devar ne chod daala Archives - Antarvasna https://sexstories.one/tag/devar-ne-chod-daala/ Hindipornstories.org Fri, 05 Nov 2021 08:04:55 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.1 बहन का देवर https://sexstories.one/%e0%a4%ac%e0%a4%b9%e0%a4%a8-%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%a6%e0%a5%87%e0%a4%b5%e0%a4%b0/ Fri, 05 Nov 2021 08:04:55 +0000 https://sexstories.one/?p=3284 मैं अपना हाथ उसकी पेंट के ऊपर घुमा रही थी. एक कड़क और मोटी लंबी सलाख मेरे हाथ मे आ गयी. यह तो राकेश का लंड था. उसने अपना लंड अपनी पेंट की चैन खोल कर निकाल लिया था और मेरा हाथ जैसे हीवहाँ पहुँचा उसने पॉपकॉर्न के पॅकेट की जगह अपना लंड खड़ा कर रखा था..

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Behan Ka Devar ne choda रजनी दीदी कितनी बदल गयी इन दिनों. मुझे तो यकीन ही नही हो पा रहा था की शादी के तीन साल बाद दीदी को इतने मॉडर्न आउटफिट मे देखूँगी. कहाँ हम दोनो बहने छत्तीसगढ के दुर्ग मे रहने वाली सीधी सादी लड़कियाँ कहाँ आज वेस्टर्न आउटफिट मे बात-बात मे “ओह कहने वाली मेरे से 2 साल बड़ी रजनी दीदी. कपड़े भी क्या थे. छोटा स्कर्ट जिसमे से उसकी जांघें ऊपर तक दिख रही थी. सामने वाले को उसकी पेंटी के दर्शन करने मे शायद ही कोई तकलीफ़ हो. साथ ही टॉप ऐसा की उसके दोनो बोब्स के बीच की घाटी दूर तक जाती हुई दिखाई पड़ रही थी. सामने वाला आदमी तो भोचक्का हुए दीदी को ऊपर से नीचे तक देखता रहे।

मुझे याद है जब रजनी दीदी की शादी मुंबई के उदय शाह के साथ तय हुई थी. रजनी दीदी का रूप ही ऐसा था की हर कुंवारे मर्दो मे होड़ बनी रहती की कैसे इसे पाया जाए. लेकिन मेरे दूर के एक रिश्तेदार ने दीदी की शादी उदय से फिक्स करवा दी. उदय तो दीदी को देखते ही फिदा हो गया और शादी के लिए तुरंत हां कर दी. विवाह 2 महीने बाद होना था. उस समय मैं B.A. के लास्ट इयर मे पढ़ रही थी. वैसे खूबसूरती मैं भी कम नही हूँ. मेरा गोरा बदन और मेरा साँचे मे ढला जिस्म कइयो को रात भर तड़पाता है. ऐसा मेरा नही मेरे बॉय-फ्रेंड राकेश का कहना है. जहाँ दीदी का किसी से प्यार नही था वहाँ मेरा राकेश के साथ अफेर्स एक साल से चल रहा है. हम दोनो के शारीरिक संबंध भी बन गये. मैं दीदी के मुकाबले काफ़ी फास्ट-फॉर्वर्ड हूँ. लेकिन यहाँ आज दीदी को देखकर पता चला की मैं फास्ट-फॉर्वर्ड नही बल्कि स्लो मोशन हूँ।

शादी की दो साल बाद जब जीजाजी उदय ने शेर मार्केट से काफ़ी पैसा बना लिया तो उन्होने यह 3 बेडरूम हॉल का फ्लॅट मुंबई के प्रभादेवी इलाक़े मे खरीदा जो कि यहाँ का काफ़ी पॉश एरिया माना जाता है. दीदी के साथ उसका देवर राकेश भी रहता है. संजोग से मेरे बॉय-फ्रेंड और दीदी के देवर का नाम एक जेसा ही है. मैने दीदी से चहकते हुए पुछा, “दीदी, जीजाजी ने पैसा कमाते हुए तुझे भी कोहिनूर का हीरा जैसा बना दिया… क्या बात है..”तब दीदी ने मुझे सब तसल्ली से बताया की जीजाजी को दीदी का मॉडर्न रूप ही पसंद है।

अब उँची सोसाइटी वालों के साथ उठना बैठना हो गया तो रोज किसी ना किसी पार्टी या क्लब मे जाना पड़ता है.. वहाँ पर सभी वेस्टर्न आउटफिट्स पहने हुए नाचते गाते हुए सारी रात मस्ती करते है और देर रात बाद घर वापस आते है… दीदी ने कहा, “कल्पना, तेरे जीजाजी को यह सब ही पसंद है… अब मुझे भी यही सब अच्छा लगने लगा..” तभी मुझे जीजाजी और उनके भाई राकेश का ध्यान आया. मैने तुरंत ही पूछ लिया, “दीदी, जीजाजी और राकेश नही दिखाई दे रहे है.. कहाँ गये हुए है?” दीदी ने कहा, “तेरे जीजाजी और राकेश बिजनेस के सिलसिले मे कोलकाता गये हुए है… कल दोपहर तक आ जाएँगे… अब तू आराम कर और नहा ले.. काफ़ी थक गयी होगी..” मैं फिर नहाने चली गयी और तेयार होकर फिर से दीदी के बेडरूम मे आ गयी।

फ्लॅट के तीन रूम मे से एक दीदी का बेडरूम, एक मे राकेश और तीसरा गेस्ट रूम है जिसमे अभी मेरा समान पड़ा है. जैसे ही मैं दीदी के रूम घुसी दीदी ने कहा, “मुंबई आई है तो ऐसी ड्रेस तो छोड़ दे… यहाँ तो वेस्टर्न आउटफिट्स पहन कर मजा ले… दुर्ग मे तो तुझे पहनने का मौका मिलेगा नही..” मैं हंसते हुई बोली, “सलवार कमीज़ ठीक नही है क्या?” दीदी ने कहा, “नही.. यह बात नही… यहाँ हम लोग जब पार्टियों मे जाते है तो वेस्टर्न आउटफिट ही पहनते है.. तू भी वही सब पहन…” मैने कहा, “मेरे पास तो वो सब कुछ नही है…” दीदी ने कहा, “तो मेरे वाले पहन ले… एक सी ही फिटिंग है हम दोनो की… कोई तकलीफ़ नही होगी..” मेरा भी वेस्टर्न आउटफिट पहनने का सौक था लेकिन दुर्ग मे नही चलता था।

तभी दीदी ने अपनी अलमारी से अपनी ढेर सारी ड्रेस निकाली और मुझे दे दी और बोली, “जो पसंद है उससे पहन ले.. साथ ही 5-7 ड्रेस और निकाल ले ताकि रोज-रोज मेरी अलमारी से निकालना ना पड़े..” मैने अपनी पसंद की ड्रेस निकाल ली… ज़्यादातर स्कर्ट और ब्लाउज ही थे. इनमे से एक ड्रेस मैने अपने कमरे में जाकर पहनी. ड्रेस पहने के बाद जब मैने आईने मे देखा तो शरमा गयी. मेरा रूप कुछ ज़्यादा ही खिल पड़ा. साथ ही मेरी शरीर के दर्शन भी कुछ ज़्यादा ही हो गया. मेरी पतली जांघें स्कर्ट के नीचे से अपना पूरा जलवा दिखा रही थी. मेरी नाभि और मेरा पेट शॉर्ट स्कर्ट और शॉर्ट टॉप के बीच चमक रहा था. लो कट टॉप के कारण मेरे बोब्स खिल उठे. मेरे हाथ ने बरबस ही मेरे दोनो बोब्स को थाम लिया. मैं चहक उठी. उफ मेरा सेक्सी बदन…फिर हम दोनो बैठ कर गप-शप करने लगे. लंच और डिनर हम दोनो ने भरपूर बातें करते हुए ही लिया।

रात कब हुई पता ही नही चला. ज़्यादातर मैं ही बोलती रही. दुर्ग की बातों को याद करते रहे. फिर हम दोनो कपड़े चेंज करके सो गये. सुबह उठने के बाद, दीदी तो कहीं चली गयी. मैं घर मे अकेली ही थी. दोपहर के बाद वापस आई तो हम दोनो ने साथ ही लंच लिया. थोड़ी देर बाद जीजाजी और उनका भाई राकेश भी कोलकाता से वापस आ गये. जीजाजी मुझे देखते ही अपनी बाहों मे ले लिया.”कब आई मेरी सालीजी,” जीजाजी ने पूछा.”कल से आई हूँ लेकिन हमारे जीजाजी को फुर्सत ही कहाँ,” मैने बनावटी गुस्सा जताते हुए कहा और हम सब हंस पड़े. तभी दीदी ने अपने देवर राकेश से मिलाया. मैने कहा, “हेल्लो…” राकेश बोला, “ऐसे नही.. अपने जीजाजी से जैसे मिली वैसे ही हमारी बाहों मे..” मैने शरमा गयी और बोली, “धत्त्त..”सब हंस पड़े।

मैने राकेश को अपने जिस्म पर घूरते हुए कई बार पाया. ऐसी मिनी ड्रेस कयामत ही धाती है मर्दो पर. मुझे भी लड़को को सताने मे बड़ा मजा आता है. मेरा साँचे मे ढला जिस्म राकेश का ध्यान मेरी और बार-बार खींच रहा था. तभी जीजाजी दीदी से मुस्कराते हुए बोले, “रजनी आज रात को मिस्स. & मिस्टर. अग्रवाल आ रहे है. रात को उनके यहाँ पार्टी है. वहा जाना पड़ेगा..” यह सुनते ही दीदी का चेहरा खिल उठा. दीदी बोली, “ठीक है मैं रात को 10 बज़े तक तैयार हो जांउगी..” मैने जीजाजी से शिकायत करते हुए कहा, “क्या जीजाजी? हम तो आए है और बाहर रहने की बात करते है.” जीजाजी ने कहा, “एक दो दिन की ही बात है. फिर फ़ुर्सत से तुम्हारे साथ ही रहेंगे.”दीदी ने अपने देवर से कहा, “राकेश, क्यों न तुम कल्पना को यहाँ खुले हुए नये मल्टिप्लेक्स में मूवी दिखा देते.

फिर रात को किसी क्लब मे ले चलना. बोर नही होगी.” राकेश बोला, “ठीक है.. अभी 4 बजे है. कल्पना तुम ठीक 6 बजे रेडी रहना. फिर क्लब चलेंगे…”

शाम 6 बजे मैं और राकेश मूवी देखने पहुँचे. ओंकारा. देशी गालियो से भरी हुई मूवी ले..” आ “रग़ड डाल साली को..” जैसे कॉमेंट धीरे-धीरे पास कर रहा था. एक तो मूवी की गालियाँ और दूसरे राकेश के कमेंट्स फिल्म देखने का मेरा मजा दुगुना कर रहे थे. तभी इंटरवेल हो गया. इंटरवेल मे राकेश पॉपकॉर्न का बड़ा पेक ले आया. वापस आया तो हॉल की हल्की लाइट के बीच मेरे सामने खड़ा हो गया. मैने उसकी नज़रों को अपने दोनो बोब्स की घाटी के बीच पाया. मैने महसूस किया की उसकी पेंट चैन के हिस्से से उठ चुकी थी. वो काफ़ी तनाव मे था. मैं हल्के-हल्के मुस्कुरा उठी।

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तभी मैने जान बुझ कर अपने सिर को आगे किया और उसके तने हुए लंड पर टच कर दिया और बोली, “लो आगे निकलो और बैठो.” लंड पर मेरे सर का टच होते ही उसने अपनी आँखें बंद कर ली. मानो उसको बड़ी रिलीफ मिली हो. मैं जानती थी की यह रिलीफ नही बल्कि उसके लंड को और बेचैन कर देगा. और वही हुआ. हम दोनो पॉपकॉर्न खाने लगे. पॉपकॉर्न का बास्केट राकेश ने अपनी पेंट पर रख रखा था और शायद अपने हाथ से अपने लंड को दबा रहा था. उसके हाथ की हरकत मुझे यह महसूस करवा रही थी. लेकिन उसके मन मे तो कुछ और ही चल रहा था.

अंधेरे मे पॉपकॉर्न खाने के मेरे हाथ बार-बार उसकी पेंट से टकरा रहा था और इससे उसकी उत्तेजना बढ़ती जा रही थी. उसके कमेंट्स आने बंद हो चुके थे. तभी मैने महसूस किया की मेरे हाथ मे यह गर्म-गर्म क्या लग रहा है. अंधेरे मे पॉपकॉर्न के लिए मैं अपना हाथ उसकी पेंट के ऊपर घुमा रही थी. एक कड़क और मोटी लंबी सलाख मेरे हाथ मे आ गयी. यह तो राकेश का लंड था. उसने अपना लंड अपनी पेंट की चैन खोल कर निकाल लिया था और मेरा हाथ जैसे हीवहाँ पहुँचा उसने पॉपकॉर्न के पॅकेट की जगह अपना लंड खड़ा कर रखा था।

मैं चोंक गयी. मुझे गुस्सा भी आ रहा था और मजा भी. गुस्सा इसलिए की उसने मुझे क्या समझ रखा है. एक रांड़. जिसे जब चाहो अपना खिलोना दे दो. मजा इसलिए आ रहा था की कोई लड़का मेरी जवानी के लिए तरस रहा था. लेकिन मैने गुस्से से लेकिन धीरे से कहा, “कोई तमीज नही है तुम मे..?” फिर मुहँ घुमा कर चुप-चाप बैठ गयी. थियेटर मे मैं कोई तमाशा खड़ा करना नही चाहती थी. बाकी की फिल्म हम-दोनो चुप- चाप देखते रहे. जैसे ही मूवी खत्म हुई मैं झट से उठी और बाहर निकालने लगी.

बाहर आते ही राकेश बोला, “i m सॉरी… प्लीज़ माफ़ कर दो…” मैने गुस्से मे बोली, “क्यों माफ़ कर दू ? तुम किसी भी लड़की के साथ ऐसी हरकत कैसे कर सकते हो?”

राकेश ने नज़रें झुकाए बोला, “मैं अपने आपे मे नही रहा… प्लीज़ माफ़ कर दो ना..” मैने तमाशा ना खड़े करते हुए कहा, “ठीक है.. माफ़ किया.. लेकिन आगे से मेरे साथ ऐसा नही करोगे.. समझे..” फिर हम दोनो बगैर क्लब गये घर पर आ गये. डिनर भी नही ले पाए. घर पहुँचा तो पाया दीदी और जीजाजी जा चुके थे. एक्सट्रा चाबी राकेश के पास थी. मैं सीधे अपने रूम मे चली गयी और गुस्से मे बगैर ड्रेस चेंज किए सीधे बिस्तर पर लेट गयी. राकेश हॉल मे बैठा टीवी देख रहा था. टीवी की आवाज़ कुछ देर तो सुनाई दी फिर मुझे नींद आ गयी. भूखी सोई थी।

अचानक उठ बैठी. घड़ी देखी. घड़ी मे सुबह के 4बजे थे. कितना सोई मे वो भी बगैर ड्रेस चेंज किए. उठकर पानी पिया और किचन की तरफ गयी शायद कोई बिस्किट्स वगेरह मिल जाए. हॉल की लाइट जल रही थी. राकेश वही सोफे पर ही सोया हुआ था. उसने कपड़े ज़रूर चेंज कर लिए थे. इस समय उसने केवल बॉक्सर पहन रखा था. बनियान या टी -शर्ट नही पहने हुए था.

राकेश का शरीर बड़ा ही दिलकश दिखाई दे रहा था. चेहरे पर हल्की मुस्कान. सीना नंगा और उस पर काले- काले गहरे बाल. मज़बूत फूली हुए बाहें. हाथ अपने बॉक्सर पर. बॉक्सर का आगे का हिस्सा फुला हुआ. शायद मुझे ही सपने मे देख रहा हो इसीलिए उसका लंड अकड़ा हुआ लग रहा था. अब मेरा ध्यान उसके बॉक्सर पर ही टिक गया. थियेटर मे जब उसने अपना लंड पॉपकॉर्न की जगह मुझे पकड़ाया था वो सब अब मुझे ध्यान आने लगा. उसका लंड बहुत ही गर्म था. काफ़ी लंबा और मोटा लंड था उसका. मैने ध्यान दिया की मेरा हाथ उसको पूरी तरह से पकड़ नही पाया था कारण की उसका लंड काफ़ी मोटा था.

पॉपकॉर्न की तलाश मे मैने उसका पूरा लंड नाप लिया था. काफ़ी लंबा भी था. उसको सोचते ही मैं अब उसके एक दम करीब आकर बॉक्सर को देखने लगी. वाकई मे काफ़ी लंबा और मोटा लंड था उसका. मैने अपने बॉयफ्रेंड का लंड अपने मुहँ और चूत मे लिया था लेकिन राकेश का लंड काफ़ी बड़ा लग रहा था।

मेरी मुहँ से एक सिसकारी निकल पड़ी. फिर मैं किचन की तरफ गयी मगर मुझे कुछ नही मिला. दीदी शायद कहीं और रखती थी स्नॅक्स. लेकिन कहाँ यह मुझे नही मालूम. एक बार सोचा राकेश को उठा कर पुछु मगर मैने इस वक़्त उसे उठाना मुनासिब नही समझा. पेट मे चूहे दौड़ रहे थे लेकिन क्या करती. वापस अपने रूम की तरफ आने लगी. फिर से राकेश के बॉक्सर की तरफ नज़र गयी. राकेश मस्ती मे सोया हुआ था अपने तने हुए लंड को अपने हाथ से पकड़े हुए. मेरी चूत मे इसको देखकर पानी आने लगा. बेकार मे ही उस से गुस्सा कर बैठी.

भूखी भी रही और एक मतवाले दिलवाले सांड़ को छोड़ कर सो गयी मैं. रूम की तरफ जब बढ़ने लगी तो दीदी के बेडरूम का दरवाज़ा बहुत ही हल्का खुला हुआ दिखा. रूम मे लाइट जल रही थी. मेने सोचा शायद जीजाजी और दीदी वापस आ गये है. या शायद अभी ही आए है. यह सोचकर की दरवाज़ा लॉक नही है तो उसे लॉक कर दू. शायद दीदी लॉक करना भूल गयी हो. जब बेडरूम के दरवाजे के पास पहुँची तो मुझे अजीब आवाज़ें सुनाई दी. यह आवाज़ें मुझे हॉल मे नही सुनाई दी थी।

इससे आगे कि कहानी अगले भाग में . . .

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