स्नेहा अब मेरे कपड़े उतारने लगी। मैंने भी जल्दी-जल्दी कर अपना कुर्ता-पजामा व बनियान को उतारा, अब मैं भी सिर्फ अंडरवियर में था। मैंने स्नेहा को अपनी बांहों में लिया और उसके होंठों को अपने होंठों से दबाया, पहले निचले फिर ऊपर के होंठ को जी भरकर चूसा।
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इसके बाद जीभ से उसकी जीभ को छेड़ा। काफी देर तक ऐसा करने के बाद अब मैंने उसकी ब्रा का हुक खोलकर ब्रा को पलंग पर फेंका।
मैंने देखा कि उसकी खुली छाती पर तने हुए उरोज अपने सिरे पर गुलाबी छतरी ताने मुझे ललचा रहे थे। मैंने एक तरफ के गुलाबी चुचूक को अपने मुँह में रखा और दूसरे को उंगलियों के बीच फंसाकर हल्के से दबाने लगा। थोड़ी देर बाद दूसरे निप्पल को मुँह में भरा व इधर के निप्पल को उंगलियों से दबाने लगा।
अब मुझे बिस्तर की जरूरत महसूस हुई तो स्नेहा को अपनी गोदी में उठाकर बिस्तर में लाकर डाल दिया। मैं उसके पास पहुँचा वैसे ही स्नेहा ने मेरा अंडरवियर खींचकर नीचे सरका दिया, व मेरे तने हुए लंड को अपने मुँह में भर लिया।
वह गरमा गई थी, लंड को मुंह के जितना अंदर तक ले सकती थी उतने अंदर तक ले रही थी।
अब मुझे लगा कि ऐसे में तो मेरा जल्दी ही गिर जाएगा और यह जीत जाएगी। तो मैं उसके बूब्स को दबाते हुए 69 के पोज में आ गया और उसकी पैन्टी को उतारकर चूत चाटने लगा।
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वह इतनी ज्यादा उत्तेजित हो गई थी कि अपनी चूत को मेरे मुंह में डाल देने की कोशिश में अपनी कमर को झटका लगाए जा रही थी। हम दोनों एकदम नंगे होकर एक दूसरे के प्राइवेट पार्ट को पूरी तन्मयता से अपने-अपने भीतर समाने की कोशिश कर रहे थे, पर हमारा यह प्रयास ज्यादा देर नहीं चला पहले मेरा गिरा, मेरे थोड़ी देर बाद ही स्नेहा ने भी अपनी चूत का फ़व्वारा मेरे मुँह में छोड़ दिया।
उधर उसने और इधर मैंने मुंह में समाए पूरे माल को गटकने के बाद लंड व चूत को चाटने का कार्यक्रम जारी रखा। यह हमारी सुहागरात की खासियत रही कि हम दोनों ने अपने पार्टनर का माल ना सिर्फ चखकर उसका स्वाद पता किया बल्कि उसे उदरस्त भी किया।
अब हम दोनों एक दूसरे से चिपककर लेट गए। मैंने स्नेहा से कहा- यार आज हमारा हनीमून हैं, कहते हैं इस दिन वर और वधू अपना यौवन एक दूसरे को जिंदगी भर के लिए सौंपते हैं।
स्नेहा बोली- मैं तो अपना सब कुछ तुम्हें सौंप चुकी हूँ।
मैं बोला- स्नेहा, हम दोनों ने अपना बदन शादी से पहले ही एक दूसरे को दे दिया था। कायदे से हमारा हनीमून तो उस दिन तुम्हारे ही घर में हो गया था।
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तुम्हारी चूत की झिल्ली का रक्त भी तुम्हारे घर की चादर में ही लगा था।
यानि आज तो हम रीति रिवाज से एक दूसरे के हो रहे हैं, नया कुछ भी नहीं है ना?
स्नेहा बोली- हाँ, यह तो है, तो आज क्या खास किया जाए जिससे हमें आज का दिन हमेशा याद रहे।
मैं बोला- मुझे एक आइडिया आया है, मानो तो बोलूं।
स्नेहा बोली- मानूँगी, आप बोलो तो सही।
मैं बोला- क्यूं ना तुम्हारी गांड की सील तोड़कर हनीमून मनाएँ?
स्नेहा बोली- यानि तुम्हारा लंड मेरी चूत नहीं गांड में घुसेगा?
मैं बोला- हाँ कोशिश करते हैं ना।
स्नेहा बोली- पर उसमें बहुत दर्द होगा।
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मैं बोला- देखो जैसे चूत में पहली बार लंड जाने से दर्द होता है ना। सो गांड में भी पहली बार लंड जाएगा, तब दर्द तो होगा पर बाद में बहुत मजा आएगा, गांड में भी लौड़ा लेने की इच्छा होगी।
स्नेहा बोली- वो तो ठीक है, पर यदि दर्द ज्यादा हुआ तो आप अपना लंड बाहर निकाल लीजिएगा प्लीज।
मैं बोला- एकदम निश्चिंत रहो स्नेहा, जब तुम दर्द को सहन न कर पाओ तो मुझे कह देना मैं तुरंत अपने लंड को बाहर निकाल लूँगा।
इस प्रकार हमने अपनी सुहागरात में गांड के दरवाजे खोलने का निर्णय लिया।
यह नया प्रयोग था, मैंने भी अभी तक किसी की गांड नहीं मारी थी पर गांड मारते समय होने वाले दर्द के बारे में सुना जरूर था।
मैं ड्रेसिंग टेबल से क्रीम और तेल उठा कर लाया। मैंने कहानी की शुरुआत में ही स्नेहा की उभरी हुई गांड के बारे में बताया था। लड़की चोदने को मिले तो हर कोई स्वाभाविक रूप से उसकी चूत ही चोदता है। मैंने भी यही किया पर शादी के बाद तो इसे जिंदगी भर चोद सकूंगा सो अब मेरी नजर स्नेहा की गांड पर थी।
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उसके पास पहुँच कर मैंने कहा- तुम मेरे लौड़े पर यह तेल व क्रीम लगाना और मैं तुम्हारी गांड में यह लगाकर बढ़िया मालिश कर देता हूँ।
मैंने पहले उसे घुटने टेक कर कूल्हे ऊपर करने कहा, उसने वैसा ही किया।
मैंने पहले उसके कुल्हों और गाण्ड के पास तेल लगाकर अच्छे से मालिश की, इस दौरान छेद के अंदर भी उंगली डालकर लंड जाने का रास्ता बनाया। फिर गाण्ड में क्रीम लगाकर उसे और चिकना किया। इस प्रकार स्नेहा की गांड अब चुदने को तैयार थी।
गांड से मेरा हाथ हटते ही स्नेहा मेरे लौड़े के पास आई और उस पर तेल डालकर खूब मालिश की। तेल के बाद उसने भी लंड के सुपारे पर खूब क्रीम लगाई।
मेरा लंड भी अब उसकी गांड में जाने तैयार था।
अब मैं भी घुटने के बल ही उसकी गांड के पीछे आया और अपने लंड को उसकी गांड के छेद पर रखा और लंड को धक्का दिया।
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लंड का सुपारा थोड़ा सा अंदर हुआ। लंड अंदर जाने से स्नेहा पलंग पर उल्टा ही पूरा लेट गई और बोली- दर्द हो रहा है, बाहर निकालो। पर मैं जानता था कि अभी छोड़ दिया तो फिर नहीं करने देगी। तो मैंने थोड़ा और भीतर घुसा दिया।
अब स्नेहा की कराह व ‘लौड़ा बाहर निकालो’ की आवाज और तेज हो गई, मैं डरा कि कहीं बाहर लोग जमा न हो जाएँ, स्नेहा से कहा- आवाज नीची करो।
ऐसे में मैं थोड़ा-थोड़ा और अंदर डाल रहा था। स्नेहा की आवाज नहीं रूक रही थी, ना ही वह चुदाई में मुझे सहयोग दे रही थी।
अबकी बार मैंने उसे थोड़ा ढांढस बंधाया और लंड को पूरा अंदर कर दिया। उसकी गांड के किनारे फट गए और उनसे खून की हल्की धार निकल रही थी।
मुझे दुख तो हुआ पर खडे लंड के जोश के आगे मुझे उसके दुख ने रुकने नहीं दिया। अब मैंने अपनी स्पीड बढ़ा दिया और कुछ ही देर में मेरा गिर गया। स्नेहा दर्द से बेहाल थी, मैंने उसे पुचकारना शुरू किया। मेडीबाक्स से डेटाल की शीशी लाया और डेटाल रूई में लगाकर उसकी गाण्ड के चारों ओर लगाया।
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उसे सामान्य होने में थोड़ा समय लगा। चादर में उसके खून के अलावा थोड़ी गंदगी भी गिर गई थी सो इस चादर को उसने निकालकर पलंग के नीचे ही डाल दी। पलंग पर दूसरी चादर डालकर हम लोग अब लेट गए।
स्नेहा के दर्द को कम करने के लिए मैंने उससे बात शुरू की और उसके बूब्स को सहलाने लगा। कुछ देर बाद वो ठीक हुई और हमने फिर चुदाई का दौर शुरू किया।
इस बार मैंने उस पर प्यार की बरसात करते हुए अपने लंड को उसकी चूत में डाला। अब तक सुबह के 5 बज गए थे। हम दोनों एक दूसरे की बाहों में आबद्ध हो सो गए।
तो प्यारे पाठको, यह थी हमारी सुहागरात की बात।
हम दोनों इस रात की बात आज भी करते हैं।
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हमारी सुहागरात जिसने हमें बहुत खुशी दी, उसकी मुख्य बात यह रही कि किसी भी औरत के शरीर में तीन छेद रहते हैं, मुंह, चूत और गांड, और स्नेहा नें सुहागरात में अपने इन तीनों छेदों में मेरा लंड डलवाया।