मेरे मुंह से सिसकारी फूटने लगी.
फिर धीरे धीरे किस करते करते उसने लन्ड के टोपे पे किस किया, फिर लन्ड पे बहुत सारा थूक डाला और कुल्फी की तरह चूसने लगी, मेरी हालत खराब हो गयी, वो कभी पूरा मुंह में ले जाती, कभी टोपे पे जीभ रगड़ती। अचानक वह इस तरह बैठ गयी कि उसकी चूत मेरे मुंह पे आ गई, उसमें से मादक सुगंध आ रही थी। मैंने हिम्मत करके उसकी चूत पे जीभ से टच किया, फिर धीरे धीरे चाटने लगा।
अब मुझे भी मजा आ रहा था चाटने में!
अचानक उसके मुंह से आ उम्म्ह… अहह… हय… याह… आह की आवाज निकली और उसका पानी निकल गया; और उसकी आह के साथ मेरा भी पानी निकल गया और सारा उसके मुंह में चला गया, उसको उल्टी आने को हो गयी, उसने थूक दिया, फिर मेरे सीने से लग कर लेट गयी।
कुछ देर आराम करने के बाद मैंने उसके अतीत के बारे में पूछा और उसका पति कहां है यह पूछा तो आंसुओं का दरिया उसकी आँखों से बह निकला, मैंने उसकी आंखें पोंछी तो उसने बताना शुरू किया- मेरा नाम कामिनी और मेरी बेटी का नाम दिव्या है.वो काफ़ी गरीब है। उसके पति के देहांत के बाद हम दोनों ने इसी झोपड़ी में रहना शुरू कर दिया.
उसकी बातें सुनकर मेरी आँखों में भी आंसू आ गए, फिर मैंने खुद को संभाला और उसे चुप करवाया।
अब दिन भी निकल आया था, उसने अपने कपड़े पहने और उठ खड़ी हुई।
कुछ सोचते सोचते न जाने कब मेरी आँख लग गई, जब आंख खुली तो सामने उस लड़की यानि दिव्या को अपने पास पाया, उसके खुले गीले बाल देखकर लग था था वो अभी नहा कर आयी है।
सहसा मेरे दिमाग में उसका अहसान आ गया, उसने मुझे नई जिंदगी दी थी, आज उसी की वजह से मैं जिंदा हूँ। यह बात याद आते ही मेरी आँखें गीली हो गई और हाथ जोड़कर उसका शुक्रिया अदा किया तो वह बस हंस के रह गई।
मैंने अब वहां से चलने की सोची तो मैंने उठने की कोशिश की, उठते ही धड़ाम से गिर पड़ा, दिव्या ने मुझे सहारा देकर उठाया, मैंने उसकी कमर को थामने की कोशिश की तो ज्यादा वजह होने की वजह से उसके ऊपर गिर गया, और मेरा एक हाथ उसके मम्मे पर चल गया और दूसरा उसके कूल्हे को पकड़े था।
बड़ा मस्त नजारा था दोस्तो, मेरा तो उठने का मन ही नहीं कर रहा था लेकिन मर्यादा के चलते उठना पड़ा।
दिव्या ने मुझे चारपाई पर बैठाया और मेरे लिए चाय बना लायी। उसकी माँ कहीं दिख नहीं रही थी तो जब मैंने उससे पूछा तो पता लगा कि वो दोनों माँ बेटी यहाँ से कुछ किलोमीटर दूर खेत में काम करती हैं, वो भी जाती थी लेकिन आज मेरी वजह से नहीं जा पायी।
मुझे बहुत ही ज्यादा अफसोस हुआ, मैंने उन लोगों के लिए कुछ करने की सोची।
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अब मेरा दर्द बहुत हद तक कम हो चला था, लेकिन कल शाम का ख़ौफ़ अभी भी था, मैंने दिव्या से मेरी जान बचाने का शुक्रिया कहा और नई जिंदगी देने के लिए उसका अहसान माना.
दोनों को बाथरूम व किचन दिखाया, उन दोनों को फ्रेश होकर नहाने को कहा और मैंने बाहर से कुछ नाश्ता लाने की सोची, और दोनों को कहकर बाहर आ गया।
मेरा मन बहुत खुश था, दिल में सुकून था।
मैं कुछ खाने के लिए पैक करवाकर वापिस घर आ गया था, वे दोनों नहा धोकर बैठी थी, हमने खाना खा लिया.
फिर हम आगे की योजना बनाने में व्यस्त हो गए, अब शाम हो चली थी, रात का खाना घर में ही बनाने का प्लान बनाया।
दोनों मां बेटी ने मिलकर खाना बनाया, इसी दौरान दिव्या मेरे पास आकर बोली- देखो, मैंने आप के लिये रोटी बनाई है!
उसकी इस मासूमियत भरी बात पर मेरे चेहरे पर मुस्कान छा गयी.
हम सब ने साथ बैठकर खाया।