Chachi Ka Chota Bhai,Mera Pati
मैं उत्तरांचल के एक छोटे से कसबे में पैदा तथा पली और बड़ी हुई हूँ, मैंने उसी कसबे के एक स्कूल में 10+2 तक की शिक्षा ग्रहण करने के बाद आगे की शिक्षा ग्रहण करने के लिए पास के एक शहर के एक इंजीनियरिंग कालेज से आगे की पढ़ाई की। इंजीनियरिंग की स्नातक होने के बाद अब मैं उसी कालेज में ही लेक्चरार के पद पर नियुक्त हूँ और विद्यार्थियों को पढ़ाती हूँ।
क्योंकि मेरे परिवार के सब लोग गाँव में ही रहते हैं इसलिए मैं शहर में अकेली ही एक छोटे से फ्लैट को किराए पर लेकर उसमें रहती हूँ।
पिछले वर्ष गर्मी की छुट्टियों में जब मैं घर गई हुई थी, तब जुलाई के माह में मेरे दादा जी चार दिनों के लिए हरिद्वार और ऋषिकेश की यात्रा पर गए थे, जब वह यात्रा से वापिस आये तो अपने साथ एक 19 वर्ष के नौजवान को भी साथ ले आये थे।
जब सभी घर वालों ने अचंभित हो कर दादा जी से उस लड़के के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि वह केदारनाथ के पास ही के गाँव रामबाड़ा में रहने वाली उनकी छोटी बहू (यानी मेरी छोटी चाची) का सबसे छोटा भाई साहिल है।
उस वर्ष जून के माह में आई बाढ़ के कारण रामबाड़ा पूरी तरह नष्ट हो चुका था और साहिल के परिवार के सभी अन्य सदस्य भी उस हादसे में गुज़र चुके थे। जब दादा जी को साहिल हरिद्वार स्टेशन पर मजदूरी करते हुए मिला तब दादा जी ने उसे पहचान लिया था।
दादा जी से मिलने के बाद उसने उन्हें रामबाड़ा में हुए प्राकृतिक त्रादसी और उस हादसे में उसके परिवार के सदस्यों के खो जाने के बारे में बताया। जब उसकी बुरी हालत देखी तो दादा जी से रहा नहीं गया और वे उसे अपने साथ ही घर पर ले आये।
क्योंकि तीन दिनों के बाद ही मेरी छुट्टियाँ समाप्त होने वाली थी इसलिए मैं साहिल से ज्यादा मेलजोल नहीं बढ़ा पाई थी लेकिन फिर भी कभी कभी कुछ बात तो हो ही जाती थी।
मेरी छुट्टियाँ समाप्त होने पर मैं वापिस शहर आ गई और अपने काम में व्यस्तता के कारण मैं साहिल को जैसे भूल ही गई!
मुझे शहर आए अभी दस दिन ही हुए थे कि एक दिन दोपहर के डेढ़ बजे साहिल मेरे कॉलेज में मुझे मिलने आया। मैं उसे वहाँ देख कर हैरान हो गई और उससे उसके शहर आने की वजह पूछी।
तब उसने बताया कि वह भी इंजीनियरिंग की पढ़ाई करना चाहता था इसलिए शहर आया था! उसने मुझे यह भी बताया कि उत्तरांचल सरकार की तरफ से केदारनाथ त्रासदी से पीड़ित विद्यार्थी को दी जा रही राहत के अंतर्गत, उसे मेरे ही कॉलेज में निशुल्क पढ़ाई का संयोग मिला था।
उसने विनम्रता से मुझसे आग्रह किया कि मैं कालेज में प्रवेश के लिए उसकी सहायता कर दूँ और उसने दादा जी का लिखा एक सन्देश पत्र मेरे हाथ में रख दिया।
मैंने जब दादा जी का पत्र पढ़ा तो हैरान और परेशान हो गई, दादा जी ने पत्र में लिखा था कि साहिल ने 10+2 कक्षा पास कर रखी थी और आगे पढ़ कर इंजिनियर बनाना चाहता है ! क्योंकि सरकार ने साहिल को यह अवसर दिया है इसलिए वह उसे शहर भेज रहे हैं।
साथ में उस पत्र में उन्होंने मुझे निर्देश भी दिए थे कि मैं साहिल को कालेज में प्रवेश के लिए सहायता करूँ और जब तक उसको छात्रावास में स्थान नहीं मिल जाता तब तक उसे अपने साथ ही रखूँ और उसकी सब ज़रूरतों का ध्यान भी रखूँ।
क्योंकि घर में दादा जी की बात का कोई भी विरोध नहीं करता है इसलिए मैं भी उनकी लिखी बात का अनादर नहीं कर सकती थी, अतः दोपहर तीन बजे कालेज बंद होने पर साहिल को अपने साथ ही अपने फ्लैट में ले गई।
घर पहुँच कर मैंने उसे एक कोने में अपना सामान रखने को कह दिया और घर में क्या क्या वस्तु कहाँ पर पड़ी है अथवा कहाँ रखनी है उसके बारे में भी समझा दिया। मैंने उसे यह बता दिया कि सिर्फ एक ही बैड होने के कारण उसे नीचे चट्टाई पर ही बिस्तर लगा कर ही सोना पड़ेगा।
इतना सब बताने के बाद मैं अपने बिस्तर पर आँखें बंद कर सुस्ताने के लिए लेट गई। कुछ देर के बाद जब मैं उठी तो देखा कि साहिल ने मेरी कही बात के अनुसार अपना बिस्तर कमरे के दूसरे कोने में नीचे चटाई पर बिछा लिया था। उसने अपना सूटकेस और बैग को भी सामने वाली दीवार के पास रखे मेरे सामान के साथ ही सजा कर रख दिया था।
जब मैंने इधर उधर देखा और मुझे साहिल नहीं दिखा तब मैं उठ कर बैठ गई और सोचने लगी कि वो कहाँ गया होगा !
उसी समय मुझे रसोई में से बर्तन खड़कने की ध्वनि सुनाई दी और जब मैं वहाँ देखने चली गई तो पाया कि साहिल अपने बैग में से मेरी माँ के द्वारा भेजा गया खाने पीने का सामान निकाल कर रसोई में सजा रहा था।
साहिल अपने बैग में से मेरी माँ के द्वारा भेजा गया खाने पीने का सामान निकाल कर रसोई में सजा रहा था।
वह गैस पर हम दोनों के लिए चाय भी बना रहा था और उसने चाय के साथ खाने के लिए माँ के द्वारा भेजे हुए पकवान भी प्लेट में लगा रखे थे !
जब मैंने उससे पूछा कि चाय क्यों बना रहे हो तो उसने कहा क्योंकि मैं उसे बहुत थकी सी लग रही थी इसलिए उसने सोचा कि चाय पीने से मेरी कुछ थकावट दूर हो जायेगी !
इसके बाद मैंने गुसलखाने में जाकर हाथ मुँह धोकर आई, तब तक साहिल चाय ले कर कमरे में आ गया था। हम दोनों ने चाय पी और फिर मैंने साहिल के प्रवेश पत्र भरने के लिए उसके सारे प्रमाण-पत्र और दूसरे कागज़ देखे और उसे प्रवेश पत्र भरने में सहायता की। जब प्रवेश पत्र पूर्ण रूप से भर दिया गया तब मैंने साहिल को उन सब को एक फाइल में लगाने के लिए कहा और रात के खाने का प्रबंध करने के लिए रसोई में घुस गई !
एक घंटे के बाद जब मैं रसोई से निकली तो देखा की साहिल भी स्नान कर तथा कपड़े बदल कर नीचे बैठा उस प्रवेश पत्र को एक बार फिर से पढ़ कर अपनी तसल्ली कर रहा था। रसोई की गर्मी के कारण मैं पसीने से भीग गई थी, इसलिए तुरंत ही रात को सोते के वक्त पहनने वाली नाइटी लेकर स्नान करने के लिए गुसलखाने में घुस गई!
खूब अच्छी तरह से साबुन मल मल कर नहाने के बाद मैं तरो-ताजा हो कर जब कमरे में आई तो देखा की साहिल ने रात का खाना मेज़ पर परोस दिया था और मेरे आने की प्रतीक्षा कर रहा था !
हम दोनों ने साथ साथ खाना खाया और उसके बाद मिल कर ही बर्तन धोये तथा रसोई को साफ़ कर के कमरे में आकर अपने अपने बिस्तर पर बैठ गए !
मैं अगले दिन कॉलेज में दिए जाने वाले लेक्चर की तैयारी करने लगी और साहिल एक किताब में से कुछ पढ़ने में व्यस्त हो गया।
रात को दस बजे मैंने साहिल को सोने से पहले लाइट बंद करने का निर्देश दिया और करवट बदल कर सो गई।
सुबह 6 बजे जब मेरी नींद खुली तो देखा की साहिल बिस्तर पर नहीं था। जब उसका पता करने के लिए कमरे से बाहर निकली तो उसे छत पर व्यायाम करते हुए देखा।
उसका 6 फुट ऊँचा गठा हुआ शरीर और उसकी मांसपेशियाँ देख कर मैं मंत्रमुग्ध हो गई तथा काफी देर तक अपने विचारों में ही वहीं खड़ी रही !
जब अचानक साहिल मेरे सामने आ कर खड़ा हो गया तब मेरी चेतना लौटी और मैं भाग कर गुसलखाने में कॉलेज के लिए तैयार होने के लिए घुस गई।
तैयार होकर हमने चाय और नाश्ता किया और दोनों 9 बजे से पहले ही कॉलेज पहुँच गए। तब मैंने साहिल को प्रशासन कार्यालय में लेजा कर उसके प्रवेश के बारे में उच्च अधिकारी से बात की। जब वहाँ की कार्य-विधि शुरू हो गई तब मैं साहिल को वहीं छोड़ कर अपनी कक्षा को पढ़ाने लिए चली गई।
मैं दोबारा 11 बजे प्रशासन कार्यालय गई तो साहिल से पता चला कि उसे ‘इलेक्ट्रॉनिक्स और संचार इंजीनियरिंग’ में प्रवेश मिल गया था लेकिन अधिकारी ने छात्रावास के बारे में अभी कुछ नहीं बताया था।
जब मैंने प्रशासन अधिकारी से साहिल के लिए छात्रावास के बारे में पूछा तो उसने बताया कि अभी उनके पास छात्रावास में जगह नहीं थी।
उसने यह भी बताया कि डायरेक्टर साहिब कह रहे थे कि कुछ छात्रों के लिए पास में ही एक घर किराए पर लेकर उसमें छात्रावास बना देंगे, इसलिए साहिल और दूसरे छात्रों के प्रार्थना पत्र डायरेक्टर साहिब के पास भेज दिए गए थे !
प्रशासन अधिकारी ने आश्वासन दिया कि जैसे ही छात्रावास का इंतजाम हो जाएगा तब वह उसकी सूचना मुझे दे देगा। इसके बाद साहिल अपनी क्लास में चला गया और मैं स्टाफ रूम में अगले लेक्चर की तैयारी में जुट गई।
उस दिन भी तीन बजे दोपहर के बाद हम दोनों मेरे फ्लैट पर आ गए और पिछले दिन की तरह अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो गए। इसी तरह कुछ दिन बीत गए और हम दोनों के बीच में अच्छा तालमेल बन गया था तथा घर का सारा काम बाँट कर कर लेते थे।
तभी दशहरा की छुट्टी के दिन एक घटना घटी जिसने मुझे कुछ विचलित कर दिया! उस दिन जब मैं रसोई में दोपहर के लिए खाना बना रही थी तब साहिल गुसलखाने में नहाने के लिए चला गया।
मैं खाना बना कर कमरे में अपने बिस्तर पर लेटी थी जब गुसलखाने से साहिल तौलिया बांधे हुए बाहर निकला। शायद उसने मुझे नहीं देखा था इसलिए उसने तौलिया खोल के एक तरफ रख दिया और नंगा हो कर अंडरवियर पहनने लगा।
उसकी जाँघों के बीच में लटकते हुए सात इंच लम्बे और ढाई इंच मोटे लिंग को देख कर मेरी आँखें फटी की फटी रह गई, क्योंकि आज तक मैंने इतना लम्बा और मोटा लिंग नहीं देखा था।
बहुत पहले घर पर दादाजी, पिताजी और भाई का लिंग एक आध बार अनजाने से देखने को मिला था लेकिन वह सब इतने लम्बे और मोटे नहीं थे।
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