बहन का देवर – पार्ट ३

मैं उत्सुकता के कारण दरवाजे के पास खड़ी हो गयी और दरवाज़ेके करीब अपना कान लगा दिया. यह क्या? उम्म्म.. हाआअँ… उफफफ्फ़… जैसी सिसकारियाँ सुनाई दे रही थी. यह लोग क्या टीवी पर ब्लू फिल्म देख रहे है? सोचते ही मन मे और देखने की तमन्ना जाग उठी. दीदी के बेडरूम का टीवी रूम के दरवाजे से सॉफ दिखता था. मैं भी क्यों ना इस ब्लू फिल्म को देखु यह सोचकर दरवाजे को थोडा और खोल दिया. देखते ही मैं सकते मे आ गयी. desi incest sex

यहाँ टीवी पर ब्लू फिल्म नही बल्कि लाइव टेलीकास्ट चल रहा था. बेड पर दो नही बल्कि चार जने थे. ग्रूप चुदाई चल रही थी. क्या है यह सब? कौन है यह लोग? दिल मे कई प्रश्न थे. गौर से देखा तो मालूम पड़ा की नीचे कोई एक मर्द लेटा हुआ अपने ऊपर रजनी दीदी को लेटा रखा था और अपना लंड दीदी की चूत मे डाल रखा था. दीदी की पीठ पर जीजाजी सोए हुए थे और अपना लंड दीदी की गांड मे डाल रखा था।

तीनो के सामने एक लड़की पलंग के ऊपर बैठी हुई थी. उसकी चूत को नीचे सोया हुआ आदमी अपनी जीभ से चाट रहा था और दीदी उसके एक बोब्स को अपने मुहँ मे ले रखा था. दूसरा बोब्स लड़की ने आँखे बंद किए हुए पकड़ रखा था. मेरे जीजाजी दीदी की गांड, मारते हुए उस लड़की का होंठ और चेहरा चूम रहे थे. उफ़फ्फ़! दीदी और जीजाजी ऐसी हालत मे. मेरा दिमाग ही घूमने लगा. मेरी आँखें ही बंद होने लगी. दीदी इतनी मॉडर्न हो गयी. कल तक की एक छोटे शहर की सीधी-सादी लड़की आज ब्लू फ़िल्मो की हिरोईन्स को भी मात दे रही थी. वाकई मे कोई कितना जल्दी बदल जाता है. अब मैने फिर से आँखें खोली और उनको हैरत से देखती रही. एक धक्का नीचे से लगा रहा था तभी दूसरा धक्का ऊपर से जीजाजी गांड मे मार रहे थे. आवाजे अब साफ सुनाई दे रही थी।

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सब लोग उफ़फ्फ़..हाइईइ.. ह.. करते हुए सिसकारियाँ ले रहे थे. आवाज़ें धड़ल्ले से आ रही थी. तभी दीदी बोली, “अग्रवाल.. स्टॉप…”अब मुझे समझ मे आया की यह कौन है. दोपहर मे जब जीजाजी ने कहा की मिस्स. & मिस्टर. अग्रवाल आ रहे है और दीदी का चेहरा खिल उठा था. यानी यह ग्रूप मे चुदाई के लिए एकत्रित हुए थे. उनकी चुदाई देखते हुए मैं मस्त हो गयी. मेरा हाथ मेरी मिनी स्कर्ट के अंदर चला गया और भीगी हुई चूत को सहलाने लगा. दूसरा हाथ मेरे टॉप के ऊपर से ही अपने बोब्स को दबाने लगा. मेरे मुहँ से सिसकारियाँ निकल रही रही थी. बेड रूम मे से कोई बाहर आने वाला नही था. सिवाय अग्रवाल के किसी की नज़र मुझ पर नही पड़नी थी. और मिस्स. अग्रवाल का चेहरा जीजाजी ने ढ्ख रखा था उसका चुंबन लेने के लिए।

मैं बेकौफ़ होकर अपनी चूत मे पेंटी को साइड कर अपनी अंगुली डाल दी. लाइव टेलीकास्ट के साथ मैं भी चुदसी हो गयी. कोई मुझे भी अपनी बाहों मे ले. कोई मेरे भी बोब्स चूसे. कोई मुझे भी चोदे. मैं आँखें बंद किए हुए अपनी चूत को अपनी अंगुली से रग़ड और छोड़ रही थी. मेरी सिसकारियों की आवाज़ तेज हो रही थी की अचानक किसी ने मुझे अपनी बाहों मे ले लिया. और मेरे होंठो को चूमने लगा. मैं घबरा कर अपनी आँख खोली. यह तो राकेश था. मैने उस से अपने से अलग करना चाहा और कुछ बोलने लगी ही थी की राकेश ने अपने होंठ पर एक अंगुली रख कर मुझे चुप रहने का इशारा किया. फिर मुझे उसने अपनी बाहों मे उठा लिया.

मैं विरोध करने की परिस्थिति मे नही थी. मेरे पूरे बदन मे सामूहिक चुदाई को देखते हुए वासना की लहरें उठ रही थी. मेरी साँसे गर्म हो चुकी थी. मेरे बोब्स उन गहरी सांसो के साथ काफ़ी ऊपर-नीचे हो रहे थे. राकेश के नंगे सीने पर हाथ रख कर मैं और मतवाली हो गयी. तभी राकेश ने मुझे कोई विरोध ना करते हुए देख मुझे बाहों मे लिए मेरे होंठो पर अपने होंठ रख दिए. मैं तड़प उठी. उसकी बाहों मेरा तन-बदन मचल उठा. उसने अपनी गिरफ़्त बढ़ा दी और अपनी जीभ मेरे मुहँ मे डाल दी. राकेश के बेडरूम मे पहुँचते ही मैं उसकी बाहों से उतर गयी लेकिन राकेश ने मुझे अपनी बाहों से आज़ाद नही किया और ना ही मेरे सुलगते होंठो को छोड़ा. उसने अपने आलिग्न मे मुझे कस कर जकड़ लिया और मेरे सुर्ख गुलाबी होंठो को चूमता जा रहा था. मुझे ऐसी दीवानगी ही पसंद थी।

मैं चाह भी रही थी की राकेश मेरे होंठो का सारा रस पी ले. तभी राकेश ने मुझे बिस्तर पर लेटा दिया और मेरे बदन पर चढ़ गया. उसने अपने बदन से मेरे बदन को मसलते हुए मेरे गाल, मेरे कान और मेरी गर्दन को चूमता रहा. अपने गरमा-गर्म चुंबनो की छाप छोड़ता रहा. मैं सुलग उठी. मुझ से रहा नही जा रहा था. अब मैं भी उसके चुंबनो का जवाब अपने गर्माते चुंबनो से देने लगी. उसके कान और उसकी गर्दन बेतहासा चूमने लगी. उसे चूमते हुए मेरा दिल धड़क रहा था. और मन मे ही यह शायरी आ गयी: चूम लू होंठ तेरे, दिल की यह ख्वाइश है! यह ख्वाइश हमारी नही, यह तो दिल की फरमाइश है! काफ़ी देर की चुम्मा चाटी के बाद हम दोनो की साँसे उखड़ने लगी थी. तभी राकेश खड़ा हो गया और मुझे फिर अपनी बाहों मे उठा कर बाथरूम की और ले चला. बाथरूम मे पहुँचते ही उसने शावर चालू कर दिया. मैं और राकेश आपस मे चिपके हुए शावर के नीचे भीगने लगे।

सुबह-सुबह का ठंडा पानी पड़ते ही मैं और राकेश दोनो काँपने लगे. लेकिन दोनो के चिपके हुए जिस्म आपस मे एक दूसरे को गर्मी भी दे रहे थे. मेरे टॉप मे से अब मेरी ब्रा झाँकने लगी. राकेश ने अपने मुहँ को मेरी गर्दन से नीचे लाते हुए मेरे दोनो बोब्स के बीच की घाटी मे अपनी जीभ डालने लगा. उसने अपने दांतो से मेरे टॉप के बटन को खोलने लगा. दो-तीन मिनट की कोशिश के अंदर ही मेरा टॉप नीचे उतर गया. अब मेरी ब्रा मे से मेरे बोब्स की गोलाई और निप्पल का कलर दिखाई पढ़ रहा था. राकेश ने अपने हाथ आगे बढाते हुए मेरे दोनो बोब्स को चोली के साथ ही थाम लिया और अपनी अंगुलियों से दबाने लगा. मैं सिहर उठी. उत्तेजना के मारे मुहँ से सिसकारियाँ निकल रही थी।

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मैने राकेश की कमर को कश कर जकड़ लिया और उसकी जांघों के बीच अपनी जांघें घुसाने लगी. इधर राकेश ने मेरी चोली के ऊपर से ही मेरे दोनो बोब्स को बारी-बारी से अपने गाल से रगड़ने लगा. अब मुझ से रहा नही जा रहा था. मैने सिसकारी भरते हुए कहा, “राकेश.. निकाल फेंको मेरी चोली को और मेरे दोनो क़ैद कबूतरो को आज़ाद कर दो… इनको अपने मुहँ मे लेकर चाटो… राकेश..” मेरी बात को सुनकर राकेश ने अपने हाथ से मुझे दीवार की और धकेल दिया और मुझे पलट दिया. अब मेरी पीठ राकेश के सामने थी. राकेश ने अपनी जीभ से मेरी पूरी पीठ को चाटने लगा. जिससे मेरे पूरे जिस्म मे वासना की लहरे और ज़ोर मारने लगी. मैं काँप रही थी. इस बार पानी के ठण्डेपन से नही बल्कि उसकी हरकतो के कारण।

मैने सिसकारी लेते हुए अपना चेहरा ऊपर उठाया और शवर के पानी को अपने चेहरे पर पड़ने दिया. तभी राकेश ने अपने दाँत से मेरी चोली का हुक खोल दिया और मुझे पलट कर अपनी बाहों मे जकड़ लिया. अब मेरे दोनो कबूतर चोली से आज़ाद होकर राकेश के सीने से सट गये. मैं सेक्स के हिलोरे लेते हुए अपने दोनो बोब्स को उसके सख़्त सीने से रगड़ने लगी. ऐसा करते देख राकेश ने मेरे होंठो को फिर अपने होंठो की गिरफ़्त मे ले लिया और लगा मेरे मादक होंठो का रस पीने. मुझसे रहा नही जा रहा था. मैने राकेश के दोनो हाथो को पकड़ा और अपने दोनो बोब्स उसकी हथेली की गिरफ़्त मे दे दिए. और बोली, “राकेश.. अब रहा नही जा रहा है. पकड़ के रग़ड दो इन शैतानो को… मुझे अपनी बाहों मे लेकर मेरे दोनो बोब्स (बोब्स) को मसल दो. इन्हे अपने मुहँ मे लेकर चूसो राकेश.. “राकेश ने अब अपने दोनो हाथो से मेरे भरे हुए सख़्त बोब्स को जकड़ लिया और लगा उन्हे मसलने।

मसलने के साथ ही मेरी सिसकारियाँ बढ़ गयी. मैं झूम उठी. मैं पानी से भीगते हुए राकेश की हरकतो का मजा ले रही थी. राकेश मेरे दोनो कबूतरो को मसलते हुए चूम रहा था. मेरे दोनो निपल्स उसके मुहँ मे बारी- बारी से जा रहे थे. साथ ही मैं उसके सिर को पकड़ कर मेरे सीने पर ज़्यादा से ज़्यादा दबाने मे लगी हुई थी. अब राकेश ने अपने एक हाथ से मेरी स्कर्ट की ज़िप खोल दी. मेरे स्कर्ट मेरे टागो से चिपकती हुई नीचे गिरने लगी।

राकेश ने अपने मुहँ को और नीचे किया और मेरी नाभि का चाटने लगा. यह सब मेरे बर्दाश्त से बाहर हो रहा था. मैं आँखें बंद किए शावर के ठंडे पानी से भीगती हुई ज़ोर-ज़ोर से साँसें ले रही थी. राकेश ने अपनी एक हथेली मेरी पेंटी पर रख दी और…मेरी चूत को रगड़ने लगा. हाईईईई… मेरी तो जान ही अटक गयी. एक तो राकेश की थियेटर की हरकत और दूसरी दीदी के रूम मे चल रही सामूहिक चुदाई ने मुझे वासना से भर कर रख दिया था. अब राकेश की भरपूर हरकतो ने मुझे उतावला कर दिया. राकेश ने अपने दूसरे हाथ से मेरी पेंटी को नीचे उतार दिया और मैं एकदम मर्दजात नंगी उसके सामने भीगती हुई खड़ी थी. राकेश अब थोड़ी दूर होकर मुझे निहारने लगा. मेरे जिस्म की शराब को अपनी आँखों से पीने लगा. तभी तो किसी शायर ने क्या खूब कहा है:.”हुस्न पर जब मस्ती छाती है, शायरी पर बहार आती है.., पी कर महबूब के बदन की शराब, जिंदगी झूम-झूम जाती है…”ऐसा ही हाल उसके लंड का था जो बॉक्सर के अंदर झूम रहा था।

मेरे बदन की शराब का नशा मैं उसके लंड पर देख रही थी जोकि बॉक्सर के बटन के बीच अटका हुआ था. उसका लंड मेरे हुस्न का दीदार करने को उतावला हो चुका था. यह कमीना बॉक्सर ही उसके आड़े आ रहा था. उसका लंड बॉक्सर के बटन्स के बीच से चीख-चीख कर कह रहा था: पलट के देख ज़ालिम, तमन्ना हम भी रखते हैं, हुस्न तुम रखती हो तो जवानी हम भी रखते हैं.. गहराई तुम रखती हो तो लंबाई हम भी रखते हैं…अब मुझसे रहा नही जा रहा था. दिल तड़फ़ रहा था लाइट के उजाले उसे भरपूर देखने के लिए।

इससे आगे कि कहानी अगले भाग में . .