Behan Ka Devar Part 3
मैं जैसे ही नीचे झुक कर उसे आज़ाद करने के लिए झुकी राकेश ने मुझे रोक दिया और मेरे होंठो का चुंबन लेते हुआ बोला, “रूको हुस्न की देवी.. ज़रा अपने सेक्सी ज़िस्म का दीदार तो करने दो…” और उसने मुझे बाथरूम की दीवार से सटा कर खड़ा
कर दिया और मुझे ऊपर से नीचे देखते हुए बोला, “उफ क्या जवानी है कल्पना तुम्हारी.. तभी तो मैं थियेटर मे बेचैन हो गया था. उफ यह हसीन चेहरा, गहरी आँखें, भीगे होंठ, चिकने गाल तुम्हारे, तराशि हुई लंबी गर्दन, पूरी हुस्न की देवी लग रही हो…अब मेरे लंड का क्या कसूर जो तुम्हे देख कर मेरी पेंट से बाहर आ गया था… तुम्हारे पॉपकॉर्न को ढूँढते हाथ मेरे लंड को दीवाना बना रहे थे…”
मैं अपनी प्रशंसा सुनकर फूली ना समा रही थी. मेरे बॉयफ्रेंड ने भी ऐसी तारीफ नही की थी जैसी राकेश कर रहा था. मैं शावर के पानी से भीगते हुए आँखें बंद किए राकेश को सुन रही थी. फिर राकेश ने मेरे बोब्स पर अपने हाथ फेरते हुए कहने लगा, “कल्पना इन भीगते बोब्स को देख कौन पागल ना होगा… यह बरसता पानी तुम्हारे बोब्स पर पढ़ कर मेरे होंठो पर गिर रहा है मानो अमृत की बूंदे छलक रही है… टप टप गिरती हुई बूंदे तुम्हारी निपल्स से मुझे मदहोश बना रही है.. उफ कयामत ढा रहे है तुम्हारे कड़क गोरे-गोरे बोब्स… और यह ज़ालिम तुम्हारी पतली कमर… इनको जैसे अपनी बाहों मे लपेटे हुए ही पड़ा रहा हूँ तुम्हारे हाथ लगाता हूँ तो लगता है जैसे टूट ना जाए… इतने भारी बोब्स को संभाले हुए कैसे तुम्हारी नाज़ुक कमर खड़ी है… उफ़फ्फ़…”
फिर धीरे से मेरी कमर को अपनी बाहों मे लेकर मेरे बोब्स को चूम लिया और मेरे निपल्स को अपने दांतो से रग़ड दिया. मेरी सिसकारी ज़ोर से निकल गयी. फिर राकेश ने अपने चेहरे को मेरी चूत के सामने लाकर मेरी गोल्डन झांटो को सहलाने लगा. उफ़फ्फ़.. मैं तड़फ़ उठी. मैने अपनी जांघों को भींच लिया. अपनी चूत को अपनी दोनो जाँघो के बीच छुपा लिया. यह मैने कोई शर्म के मारे नही बल्कि चूत मे उफान लेती हुई मस्ती को दबाने के लिए किया. लेकिन राकेश ने अपना हाथ मेरी जाँघो के बीच फँसा दिया. राकेश ने मेरी दोनो जाँघो को अलग करते हुए मेरे चूत को सहलाते हुए बोला, “हाईईइ.. इस जालिम जवानी को ना छुपाओ… हमे इसका लुत्फ़ लेने दो… अपनी चूत की दोनो पंखुड़ियों को खोलो… इसका गुलाबी पंख देखो… इसका जूस निकलते हुए देखो… मेरा लंड तड़फ़ रहा है इससे मिलने के लिए… मेरे होंठ बेकाबू हो रहे है इससे चूमने के लिए…”
यह कहकर उसने अपना सिर मेरी दोनो जाँघो के बीच डाल दिया. मैं काँप उठी. उसके होंठ मेरी चूत के होंठ से जा चिपके. मेरी चूत का रस बरबस निकलता गया और राकेश उससे पीकर मस्ती से झूम रहा था. मैं ज़ोर-ज़ोर से साँसे लेते हुए अपनी मस्ती को चूत के रास्ते उसके मुहँ मे डाल रही थी. मेरे **** थिरक रहे थे. मैं बाथरूम की दीवार से सटी हुई अपनी दोनो टांगो को खोलती जा रही थी. अब मुझसे रहा नही जा रहा था लेकिन राकेश भी मुझे छोड़ नही रहा था. उसका उतावलापन मुझे बेकाबू कर रहा था. मेरे होश उड रहे थे. तभी मेरे मुहँ से निकल गया, “राकेश, अब मुझसे रहा नही जा रहा है.. प्लीज़ अब मेरी चूत को चूसना छोड़ो.. अब मुझे अपनी बाहों मे लेकर मुझे मसल दो… मेरे बदन को रग़ड-रग़ड कर चोदो…” राकेश ने मेरी फरियाद सुन ली।
वो मेरे सामने खड़ा हो गया. मैने देर ना करते हुए उसके बॉक्सर को झट से नीचे की और खींच दिया. आह.. यह क्या.. इतना मोटा! उफ़फ्फ़.. लंबा! यह उसका लंड! लंड है या कुछ और.. मेरे दीमाग पर भूचाल आ गया. अर्रे यह कैसे किसी को चोद सकता है. इतना मोटा और लंबा लंड कैसे कोई लड़की अपनी चूत मे लेगी. मर ना जाएगी.. ना.. बाबा.. मैं नही ले सकती इतना मोटा और लंबा लंड… तभी मेरे दीमाग मे जीजाजी का लंड आ गया. उनका भी लंड शायद इतना ही बड़ा था. हा इतना ही बड़ा था. दो सगे भाई के लंड एक जैसे तो हो ही सकते है. लेकिन दीदी इतने बड़े लंड को कितनी आसानी से अपनी गांड मे ले रही थी. और साथ मे कह भी रही थी की और अंदर डालो. तो राकेश का लंड मैं नही ले सकती. ले लूँगी. अब मुझे वासना की आँधी के सामने अब कुछ भी नही दिखाई दे रहा था।
मैं बेचैन थी चुदवाने के लिए. मैने राकेश के लंड को थामा और अपनी चूत के नज़दीक खींच लिया. राकेश का गरमा-गर्म लंड मेरी चूत के सामने आते ही ऊपर नीचे होने लगा. उसने अपने लंड को पकड़ा और पास पडा साबुन का तोड़ा सा अपने लंड पर मसला. राकेश को अपने लंड की साइज़ का ख्याल था. वो भी जानता था की कोई लड़की पहली बार मे उसके लंड को सहन नही कर सकती. साबुन लगाने से चिकना लंड मेरी चूत के अंदर घुसने लगा. उसका सुपडा मेरी चूत मे धँसने लगा. मुझे तोड़ा दर्द हुआ. लेकिन राकेश रुका नही. उसने अपने लंड का ज़ोर मेरी चूत पर बढ़ते हुए अंदर घुसने मे कामयाब हो गया. मैं अपने होंठ को बींचते हुए दर्द को सहन करने की कोशिश कर रही थी. लेकिन दर्द बढ़ता ही जा रहा था।
मैने अपने हाथ से उसके सीने पर धक्के मारते हुए कहा, “निकालो राकेश, सहन नही हो रहा है.” राकेश ने कहा, “हां निकालता हूँ..” ऐसा कहकर उसने लंड बाहर निकाला. लेकिन पूरा कमीना था वो. थोडा सा बाहर निकाला और फिर झट से एक करारा धक्का जड़ दिया. मेरी तो साँसे ही अटक गयी. ज़बान से कुछ भी नही निकल रहा था. निकल रहे थे तो मेरे आँसू. राकेश का लंड मेरी चूत की भीतरी दीवार से जा टकराया. उससे मालूम था ऐसा होना है. उसने झट से मेरे होंठ को अपने होंठ की गिरफ़्त मे ले लिया और अपने हाथो से मेरे बोब्स को मसलने लगा. मैं छटपटा रही थी।
लेकिन बोल नही पा रही थी. मैने अपने बदन से उसके बदन को धकेलने की कोशिश की लेकिन उसके सामने मेरा बस नही चला. उसके धक्के रुके हुए थे. मेरे चुंबन लेते हुए मेरे बोब्स को मसल रहा था. फिर उसने धीरे-धीरे धक्के लगाने शुरू किए. मैं अब भी छटपटा रही थी. मेरे होंठो को अपने होंठो से जकड़े हुए मुझे कुछ भी बोलने दे नही रहा था. लेकिन धीरे-धीरे दर्द कम होने लगा. मुझे अपनी पहली चुदाई ध्यान आ गयी. उस दिन भी इससे कुछ ज़्यादा ही दर्द हुआ था लेकिन बाद मे उस दिन मुझे काफ़ी मजा आया था. जब आप मस्ती मे हो तो दर्द जल्द ही काफूर हो जाता है. यही हुआ मेरा दर्द कम होता गया. मेरे हाथ जो राकेश को धकेलने की कोशिश कर रहे थे अब उससे अपने मे समेटने की कोशिश करने लगे. यह देखकर राकेश ने अपने होंठ मेरे होंठो से हटा लिया।
जैसे ही मेरे होंठ मुक्त हुए मैं ज़ोर-ज़ोर की साँसें लेने लगी. फिर संभालते हुए बोली, “तुमने तो मुझे मार ही दिया था.” राकेश अब अपनी स्पीड बढाते हुए बोला, “लेकिन अब मजे ले रही हो.. ना.” मैं सिसकारी लेते हुए बोली, “हा.. अब धीरे धीरे क्यों… अब तो ज़ोर- ज़ोर के धक्के मारो..” राकेश ने यह सुनते ही अपनी जाँघो की स्पीड बढ़ा दी और मैं दनादन-दनादन आते हुए धक्को का स्वागत अपनी जाँघो को खोलते हुए करने लगी. कुछ ही देर मे मेरे सब्र की सीमा टूट गयी और चीख मारते हुए राकेश से लिपट गयी. मेरी चूत का बाँध खुल गया. उसमे भरा हुआ पानी छुटने लगा. उसका कड़क लंड मेरी चूत की दीवारो पर अब भी शॉट लगाए जा रहा था. वो नही रुक रहा था. अबकी बार मेरी सिसकारियाँ ज़्यादा ज़ोर से निकल रही थी, “उफ़फ्फ़.. … क्या चोद रहे हो तुम.. मेरे चूत दो बार चुद चुकी है.. तुम्हारा लंड मेरी चूत को रौंद कर रख दिया.. अब बस करो.. अब मुझे तोड़ा आराम करने दो..”
राकेश ने अपने धक्को को बंद किया और अपने तने हुए मोटे लंबे लंड को बाहर निकाल लिया. उसका लंड तो अब ज़्यादा ही बड़ा लग रहा था. मेरे रस से भीगा हुआ लंड मेरी चूत की और ही तना हुआ था. मैं राकेश की बाहों मे समा गयी. राकेश ने मुझे फिर अपनी बाहों मे उठा लिया और हमारे भीगे हुए बदन चल पड़े बेडरूम के बिस्तर की और. उसने मुझे बिस्तर पर लिटा दिया और मेरी बगल मे लेट गया. हम दोनो अपनी उखड़ी हुई सांसो को नियंत्रण मे लेने की कोशिश करने लगे. मैं आँखें बंद कर अब तक की हुई चुदाई का रिप्ले देखने लगी. अब तक मैं निढाल हो चुकी थी. राकेश भी आँखें बंद किए हुए लेटा था.
मैं सोने की कोशिश तो नही कर रही थी लेकिन मेरा बदन टूट रहा था. करीब पंद्रह मिनिट बाद मेरी आँखें खुली. थकान कम हो चुकी थी. मैने देखा राकेश आँखें बंद किए हुए ऐसे ही पड़ा है. मेरा ध्यान उसके बदन पर था. उसका लंड अब एकदम तना हुआ नही था लेकिन एकदम लूज भी नही हुआ था. उसका हल्का लूज लंड अपने पूरे साइज़ से शायद 2-2-1/2 इंच घट चुका था. लेकिन उसका लूज लंड भी कई लोगों के एकदम टाइट लंड के बराबर था. उफ.. जालिम ने स्टॅमिना भी पूरा पाया है. तभी तो इतना चोदने के बाद और आराम करने के बाद भी उसका लंड सिकुडा नही था. मैने करवट बदलते हुए अपनी एक टाँग उसकी टांगो पर रखी और उसके चेहरे को चूमती हुई बोली, “सो गये क्या?” राकेश ने अपनी आँख खोलते हुए बोला, “नही.. तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था..” मैं अब राकेश के लंड को अपने हाथ मे थामते हुए बोली, “तुम्हे पता था की दीदी के रूम क्या चल रहा है..” राकेश बोला, “मैं भैया और भाभी के पर्सनल मेटर्स मे ध्यान नही देता.. उनकी जिंदगी है तो उन्हे अपने तरीके से जीने दो.. अब मैं तुम्हारे साथ हूँ और यह सब भाभी को मालूम पड़े तो तुम्हे कैसा लगेगा.. तुम अपनी जिंदगी जियो और तुम्हारी दीदी को उनकी जिंदगी जीने दो..” मैने कुछ पूछना अब मुनासिब नही समझा।
मैं अपनी जिंदगी भी तो अपने तरीके से ही तो जी रही थी. मैने अपने को झटका देते हुए अपना ध्यान राकेश के लंड पर लगा दिया. राकेश का लंड अब अपने रंग मे रंगने लगा. उसका साइज़ बढ़ता गया. राकेश भी मेरे बोब्स को दबा रहा था और मेरे निपल्स को खींच रहा था. मेरे जिस्म मे अब वासना की लहरे हिलोरे मारने लगी. मैं उठ कर लंड को अपनी मुट्टी मे जकड़ने लगी. लेकिन एक हाथ की मुट्टी मे वो कहाँ आने वाला था. दोनो हाथो मे लेकर उससे हिलाने लगी. फिर कुछ देर हिलाने के बाद अपना मुहँ नीचे किया और उसके लंड को चाटने लगी।
उसके लंड को नीचे से ऊपर तक अपनी जीभ से चाट रही थी. उसके सुपडे को अपने होंठ के बीच दबा कर चूस रही थी. उसका लंड का सबसे मोटा भाग उसका सुपाडा ही था. उसे लेने मे मुझे काफ़ी मुहँ खोलना पड़ा. फिर मैने उसके लंड को अपने मुहँ मे लेने की कोशिश करने लगी. काफ़ी मशक्कत के बाद आधा लंड ही मुहँ मे जा पाया. इस पर भी राकेश को मजा आ रहा था. जब मेरा मुहँ दुखने लगा तो लंड को मैने बाहर निकाल दिया. अब मेरे अंदर चुदने की इच्छा इतनी बढ़ गयी की मैने राकेश को बताए बिना, जो आँखें बंद किया अपने लंड का मजा ले रहा था, उसके ऊपर चढ़ गयी और उसके लंड को अपनी चूत मे लेने की कोशिश करने लगी. यह देखकर राकेश मुस्काराया. मैं समझी नही. मैने पुछा, “क्यों? क्या हुआ?” राकेश ने कहा, “अभी बाथरूम मे तुम मेरे लंड को कहाँ तो बाहर निकालने का प्रयास कर रही थी और अब कहाँ तुम मेरे लंड को अपनी चूत मे लेने को आतुर हो?”
मैने कहा, “अब मुझे इससे प्यारी चीज़ कोई नही लग रही है जिसे मैं अपने अंदर छुपा लू.” राकेश बोला, “पगली यह ऐसे थोड़े ही जाएगा. जा वहाँ ड्रेसिंग टेबल से क्रीम ला और मेरे लंड पर और तेरी चूत मे लगा… तभी यह अंदर जाएगा.. नही तो तू इस पूरे घर को दर्द के मारे उठा लेगी…” मैने वैसा ही किया. उसके लंड को ऊपर से नीचे तक पूरा क्रीम से रग़ड कर चिकना कर दिया और थोड़ी क्रीम मैने अपनी चूत के अंदर मल ली. फिर मैं राकेश के ऊपर बैठ कर उसके लंड को अपनी चूत के मुहँ पर लगा लिया और अपने कुल्ले उठाते हुए उसके लंड पर धक्का मारा।
इस धक्के से उसके लंड का सुपडा अंदर चला गया और निकल पड़ी मेरे मुहँ से चीख. मैं दर्द से बिलबिला उठी. राकेश ज़ोर से हंस पड़ा और बोला, “देखा. बगैर क्रीम मेरे लंड को लेने चली थी..” मैने चिल्लाते हुए कहा, “तुम्हे मजाक सूझ रहा है.. यहाँ मेरा दर्द के मारे बुरा हाल है.. कुछ करो., राकेश.” तब राकेश ने मेरे दोनो बोब्स को अपने हाथो मे लिया और लगा वर्ज़िश करने. जिससे मुझे थोड़ी राहत मिली. मेरे जिस्म मे धक्का मारने की इच्छा बढ़ने लगी. और मैने फिर से एक ज़ोर का धक्का मार दिया. अबकी बार लंड आधे से ज़्यादा घुस गया लेकिन दर्द बढ़ गया. मैने रुआंसी आवाज़ मे राकेश से कहा, “राकेश मेरे दोनो बोब्स को कस- कस कर मसलो… दबा दो इन्हे.. तभी मुझे मजा आएगा…”
राकेश ने अब अपना एक हाथ हटा लिया और दूसरे हाथ से मेरे एक बोब्स को कस कर मसलना शुरू कर दिया. साथ ही पहले हाथ से मेरी कमर को जकड़ते हुए मुझे अपने लंड पर हिलाने लगा. थोड़ी ही देर मे मेरा दर्द गायब हो गया और मैने उसका दूसरा हाथ भी कमर पर लगा दिया. अब मुझे धक्का नही मारना पढ़ रहा था बल्कि राकेश अपने दोनो हाथो से मेरी कमर को आगे पीछे कर रहा था जिससे मेरी चूत को उसके लंड की रग़ड मिल रही थी और साथ ही उसका लंड धीरे-धीरे मेरे अंदर घुसता जा रहा था. अब मैं भी अपनी कमर को हिलाने लगी. रग़ड लंड और चूत दोनो को मिल रही थी. मुझे बड़ा मजा आ रहा था. उसका लंड और मेरी चूत की रग़ड मेरे जिस्म मे आग पैदा कर रही थी. यह वासना की ज्वाला थी।
यह चुदाई की आग थी. इस आग मे हम दोनो के बदन झुलस रहे थे. इस चुदाई मे हम दोनो खूब मजा ले रहे थे. तभी मेरी चूत बोखला गयी और इस बोखलाहट मे अपना पानी छोड़ दिया. मैं रुकी नही. ना ही राकेश के हाथ की स्पीड को कम होने दिया. इस आग मे मैं पूरी तरह झुलसना चाहती थी. मैं चुदाई जहाँ तक हो सके जारी रखना चाहती थी. फिर कुछ देर और ऐसे ही चुदने के बाद मेरा पानी तिन बार निकल चुका था. राकेश ने अब मेरे बदन को बिस्तर पर लेटा दिया और लंड को चूत मे डालते हुए मुझ पर चढ़ गया. मेरी टांगो पर उसकी टाँग, मेरी जाँघो पर उसकी जाँघ, मेरी चूत मे उसका लंड, मेरे सीने पर उसका सीना और मेरे होंठो पर उसके होंठ. उफ़फ्फ़! अब स्वर्ग का मजा भी कुछ बाकी रह गया था. नही.. बिल्कुल नही.. यही तो था जन्नत का मजा.. ऐसी चुदाई मे और क्या बाकी रह जाता है. राकेश ने अब अपनी स्पीड बढाते हुए मुझे कस-कस कर चोद रहा था. उसकी थाप का जवाब मैं अपने कुल्ले उठा कर दे रही थी. तभी राकेश बड़बड़ाते हुए अपना पानी मेरी चूत मे छोड़ने लगा. मैं निहाल हो गयी. मैने भी इसका जवाब अपनी चूत का पानी छोड़ कर दिया. हम दोनो निढाल हो कर पड़े रहे।
फिर थोड़ी देर बाद राकेश मेरे ऊपर से उतर कर मेरी बगल मे सो गया. मैं राकेश से चिपकी हुई पड़ी रही. थोड़ी देर बाद घड़ी देखी तो सुबह के सात बाज चुके थे. तीन घंटे की चुदाई ने मेरे बदन के पुर्जे-पुर्जे ढीले कर दिए थे. एक घंटे बाद मेरी आँखें खुली तो देखा की राकेश अभी भी सोया हुआ है. उसका लंड अभी भी कड़क था. लगता है सपने मुझे अभी चोद रहा था. मैने उसे झट से जगाया और कहा, “अब जा रही हूँ अपने रूम मे…” राकेश बोला, “अभी कहाँ.. अभी हमे कौन डिस्टर्ब करने वाला है.. यहाँ मेरी बाहों मे सो जाओ..”
मैने कहा, “सुबह की 9 बजने वाली है. दीदी उठ जाएगी.” राकेश बोला, “वो लोग 11 से पहले नही उठने वाले. अभी मुझे एक राउंड और चलना है.” मैने कहा, “हद.. करते हो. मेरे बदन के अस्ति पॅन्ज़र ढीले कर दिए और कहते हो की एक राउंड और चलना है.. ना बाबा ना..” लेकिन उसने मुझे झटके से अपने ऊपर गिरा लिया और लगा मेरे होंठो के फटाफट चुंबन करने. फिर मेरे बोब्स से खेलते हुए मुझे घोड़ी बना दिया और अपने कड़क लंड को मेरी चूत से सटा दिया।
मैने उस से कहा, “रूको.. क्रीम तो लगा लो..” उसने कहा, “अब तुझे क्रीम की नही मेरे लंड की ज़रूरत है.. अब तेरी चूत मेरे लंड को एक दम से कस कर पकड़ कर धक्का खाएगी और खूब हिला-हिला कर चुदवाएगी..” फिर उसने अपना थूक लंड पर लगाया और कस कर धक्का मारते हुए मेरी चूत को चिर दिया. मैने कैसे भी करके अपने दर्द को रोका और लगी चुदाई का मजा लेने. इस बार मुझे छुड़वाने मे बड़ा मजा आ रहा था. 15-20 मिनिट की चुदाई के बाद राकेश के लंड ने पानी छोड़ दिया और तब तक मैं भी 2 बार झड़ चुकी थी।
फिर तोड़ा सुसताने के बाद मैने उसके लंड का चुंबन लिया और अपने कपड़े पहन लिए. तभी राकेश बोला, “रात को ध्यान नही रहा.. दवाई लेकर खा लेना… समझ गयी ना..” मैं समझ गयी. अभी मुझे तो जवानी का खूब मजा लेना था. मैं दीदी के इधर 4 दिन और रही. इन 4 दीनो मे मैने क्या-क्या मजे नही लिए. राकेश के फ्रेंड्स सर्कल के साथ भी रात बिताई. उसके फ्रेंड्स सर्कल मे मुझे मिलाकर 4 लड़किया और 6 लड़के थे. उसकी कहानी फिर कभी.
अभी के लिए अलविदा….