antarvasna, desi chudai ki kahani
मेरा नाम रूही है। मैं कुछ दिन पहले ही मैं अपने बेटे सूर्यांश के साथ मुम्बई में शिफ्ट हुई हूँ। इससे पहले मैं लखनऊ में अपने पति और बेटे के साथ रहती थी। लेकिन अब मेरा, मेरे पति से डिवॉर्स हो गया है। मेरे पति हमेशा शराब पीकर घर लौटते थे। घर लौटकर वह मुझसे और मेरे बेटे से मारपीट किया करते थे। कभी-कभी तो वह कई दिनों तक घर से बाहर रहा करते थे। जिस दिन मेरे पति घर नहीं लौटते थे उस दिन मैं और मेरा बेटा चैन की नींद सोया करते थे। वह हमेशा शराब पीकर घर में शोर शराबा किया करते थे।
एक दिन इन सब से तंग आकर मैंने उनसे अलग रहने का फैसला लिया और उन्हें डिवोर्स देने की सोची। यह बात मैंने अपने पति से कही लेकिन उन्होंने डिवोर्स देने के लिए मना कर दिया। ऐसे ही कुछ दिन तक तो वह घर ही नहीं लौटे। जब तक वह घर नही लौटे उस बीच मैंने डिवोर्स पेपर तैयार करवाएं। एक दिन जब वह शराब पीकर घर लौटे तो मैंने जबरदस्ती उनसे उन पेपरों पर साइन करवा लिए थे। कुछ दिनों बाद मैं वहां से मुंबई आ गई। अब मैंने मुंबई में ही रहने का फैसला लिया। मुंबई में ही मैंने अपने बेटे का स्कूल में एडमिशन करवाया। वह भी अपने पापा से दूर रहकर खुश था। उसे भी पापा बिल्कुल पसंद नहीं थे क्योंकि वह हमेशा उसे मारते ही रहते थे। उनसे बहुत डरा रहता था वह मेरे साथ मुंबई में बहुत खुश रहता है। हमारे बगल में एक आंटी और अंकल रहते हैं। जब मैं शुरू शुरू में मुंबई में शिफ्ट हुई। उन्होंने मेरी बहुत मदद की पहले हम साथ में ही खाना खाते थे क्योंकि मेरे पास पूरा सामान नहीं था। धीरे-धीरे आंटी ने सामान जोड़ने में मेरी मदद की जब भी आंटी के घर कुछ बनता था तो वह सबसे पहले मुझे बुलाती थी। मेरी आंटी के साथ अच्छी बन गई थी।
वह दोनों आंटी और अंकल दोनों वहां अकेले रहते थे उनका बेटा दूसरे शहर में रहता था। उसका नाम नीरज था वह काफी टाइम से मुंबई नहीं आया था। मैंने भी उसे आज तक नहीं देखा था। एक दिन मेरा बेटा बाहर अपने दोस्तों के साथ खेलने गया था। चलते चलते उसे चोट लग गई और उसी दिन नीरज भी अपने मम्मी पापा से मिलने आया था। उसने मेरी बेटे को देखा तो वह तुरंत ही उसे लेकर घर आया और उसने मेरे बेटे को दवाई लगा कर उसके बारे में पूछा। तब तक आंटी ने बताया कि वह पड़ोस में रहता है और इसका नाम सूर्यांश है। तभी मैं भी वहां पहुंची और मैंने देखा कि मेरे बेटे को चोट आई है। मैंने फटाफट से उसे गोद में उठा लिया। उसके बाद आंटी ने मुझे अपने बेटे से मिलवाया। आंटी ने कहा यह हमारा बेटा नीरज है। अब हमारे साथ ही रहेगा और यहीं ऑफिस ज्वाइन कर लिया है। मैं नीरज से मिली और हम सब बैठ कर बातें करने लगे थे। उसके बाद में अपने घर आ गई। थोड़ी देर बाद मैंने अपने बेटे को खाना खिलाकर सुला दिया और फिर जब यह उठा तो तब मैं उसे उसके स्कूल का काम करवा रही थी। इतने में नीरज आ गया। नीरज सूर्यांश के बारे में पूछने लगा कि अब वह कैसा है। मैंने कहा अब पहले से ठीक है। उसके बाद में वह सूर्यांश से बातें करने लगा और दोनों अच्छे दोस्त बन गए थे। नीरज को भी सूर्यांश अच्छा लगने लगा। दोनों साथ में घूमने जाया करते थे और नीरज सूर्यांश को कभी-कभी स्कूल में छोड़ने जाया करता था।
नीरज जब ऑफिस जाता था तो सूर्यांश को भी लेकर चले जाता था। दोनों एक दूसरे के साथ बहुत अच्छी तरह से घुल मिल गए थे। नीरज का हमारे घर में आना जाना हो गया था लेकिन यह बात आंटी को अच्छी नहीं लगती थी। नीरज रोज रोज हमारे घर आता रहता है। आंटी ने नीरज को समझाया कि एक बच्चे की मां है अगर तुम यूं रोज रोज उसके घर जाया करोगे तो लोग क्या कहेंगे। लेकिन नीरज फिर भी हमारे घर मेरे बेटे से मिलने आया करता था। नीरज कहता है कि यह तो लोगों का काम ही है कि वह दूसरे के बारे में बातें करें। मैं तो सूर्यांश से हमसे मिलने उसके घर जाया करूंगा। इसी बीच आंटी का बर्ताव मेरे लिए कुछ ठीक नहीं था क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि नीरज हमारे घर रोज रोज जाया करें। आंटी के इस बर्ताव के कारण अब मेरा भी उनके घर जाना बहुत कम हो गया था।
पहले तो हमारा और आंटी का एक दूसरे के घर में बहुत आना जाना होता था। जब से नीरज आया तब से आंटी को डर था कि कहीं मेरे और नीरज के बीच में कुछ गलत ना हो। इसीलिए आंटी नीरज को हमारे घर आने से रोका करती थी लेकिन नीरज नहीं मानता था। जब उसके पास समय होता था वह हमारे घर सूर्यांश के साथ खेलने आ जाया करता था।
ऐसे ही एक दिन नीरज ने मुझे कहा कि क्या तुम्हें तुम्हारे पति की याद नहीं आती है। मैंने उसे कहा याद तो बहुत आती है पर मैंने यह फैसला लिया है कि अब अलग ही रहने है। यही मेरे लिए उचित है और मेरे बच्चे के लिए भी यही सही है। नीरज हमारे घर पर बैठा था और मैंने उसे कहा कि मैं अभी आती हूं। सूर्यांश सोया हुआ था और मैं नहाने के लिए चली गई नीरज वहां पर अकेला ही बैठा हुआ था। मैं बाथरूम से नहाकर जैसे ही बाहर निकली तो मैं यही सोच रही थी कि नीरज आज किसी तरीके से मेरे साथ सेक्स कर ले क्योंकि मेरा बहुत मन हो रहा था। कोई मेरी चूत मारे मैं जैसे ही बाहर नहा कर आई तो मैंने जानबूझकर फिसलने की कोशिश की और मैं नीचे गिर गई। नीरज भागता हुआ मेरे पास आया और वह मुझे उठाने लगा। उसने मुझे उठा कर बिस्तर पर रखा और पूछा तुम्हें चोट तो नहीं आई है। मैंने उसे कहा मुझे पेट में चोट आई है उसने जैसे ही मेरे कपड़ों को ऊपर किया तो मैंने ब्रा और पेंटी नहीं पहनी हुई थी। उसने मेरा चूचो को और चूत को देख लिया। अब कहीं ना कहीं उसके मन में भी मुझे चोदने की भावना जाग गई थी। वह धीरे से अपने हाथों को मेरे स्तनों पर लगाने लगा। मैंने उसे कुछ नहीं कहा मैंने उसे कहा कि तुम आयोडेक्स लगा दो मेरे पेट पर तो थोड़ा आराम मिल जाएगा। वह आयोडेक्स को लगाने लगा और आयोडेक्स को मेरे स्तनों पर लगाने लगा। जिससे मेरे शरीर में गर्मी चढ़ने लगी।
मुझसे कंट्रोल नहीं हो रहा था और उसने भी एक दम से मेरे स्तनों को अपने मुंह में लेना शुरू कर दिया। ऐसे ही मेरे स्तनों को बहुत देर तक चूसता रहा। वह मेरे होंठों को भी चूसने लगा उसने अब अपने हाथों को मेरी चूत पर लगाना शुरु किया और अपनी उंगली मेरी चूत के अंदर डाल दिया। जिससे कि मेरा शरीर का तापमान बहुत ज्यादा बढ़ गया और मेरी चूत गीली हो गई। मैंने भी उसके लंड को उसके लोअर से बाहर निकाला और उसे अपने मुंह में लेते हुए चूसना शुरू किया। कुछ देर तक तो मैं उसकी लंड को अपने मुंह में लेकर चूसना शुरू किया। उसके बाद वह मेरी चूत को अपने मुंह से चाटने लगा। वह जैसे ही अपनी जीभ को मेरी योनि पर लगाता तो मुझे काफी अच्छा महसूस होता। उसने मुझे अपने के ऊपर बैठा लिया जैसे ही उसका लंड मेरे चूत में गया तो मैं झटके से ऊपर उठ गई और उसने मेरी दोनों पैरों को पकड़ते हुए मुझे अपने लंड पर बैठा दिया।
ऐसे ही नीरज मुझे ऊपर नीचे करता जा रहा था। कुछ देर में मैंने अपने गांड को ऊपर नीचे करना शुरु कर दिया। जब मैं ऐसा करती तो वह भी मुझे नीचे से बड़ी जोर का झटका मारता और मेरा शरीर पूरा हिल जाता। उसका लंड और मेरी गांड की जो टक्कर होती तो उससे एक अलग ही तरीके की आवाज निकलती जो की बड़ी तेज होती। अब वह बहुत तेज गति से मुझे चोदे जा रहा था। उसका लंड और मेरी चूत की रगड़न से जो गर्मी पैदा होती। वह हमारे शरीर को भी गर्म कर देती। उसने कम से कम तीन सौ झटके मारे। उन झटकों से मेरे शरीर के अंजर पंजर हिल चुका था और मेरी चूत का भोसड़ा बन गया था लेकिन अब उसका वीर्य गिरने वाला था। जो कि उसकी पिचकारी से बड़ी ही तेजी से मेरी चूत में गिरा जैसे ही उसने अपने लंड को बाहर निकाला तो उसकी वीर्य की कुछ बूंदें मेरी चूत से बाहर की तरफ आने लगी। मैंने उसके माल को अपने हाथ से ही साफ कर दिया। अब नीराज और मेरे बीच नजदीकियां बहुत बढ गई थी और वह मुझे ऐसे ही चोदने मेरे घर आ जाता था और मेरी प्यास बुझाता था।