Antarvasna, hindi sex story घड़ी में 12:00 बज चुके थे मैंने जब बाहर देखा तो मां रसोई में खाना बना रही थी और मैं सोचने लगी की मां मुझे आज डांटने वाली है क्योंकि मैं 12:00 बजे उठ रही थी इसलिए मैंने पापा से बात करनी शुरू कर दी। पापा और मैं बात कर रहे थे तभी मां भी रसोई से बाहर आई और कहने लगी अच्छा तुम्हारी प्यारी बेटी उठ चुकी है पापा ने कहा कोई बात नहीं हम लोग साथ में ही लंच कर लेते हैं। पापा हमेशा मेरी गलतियों को छुपाने की कोशिश किया करते लेकिन मम्मी की डांट जो हमेशा ही मेरी हिम्मत बढाता था और उस हिम्मत की बदौलत मैं हमेशा से ही अपने काम में अव्वल रही। पढ़ाई में भी मैंने हमेशा टॉप किया और अब नौकरी में भी मेरा लगातार प्रमोशन होता जा रहा था। मैं कंपनी के एक अच्छे होते पर बैठ चुकी थी मेरी उम्र ज्यादा नहीं थी परंतु मेरी काबिलियत के बलबूते ही मैंने एक अच्छा मुकाम हासिल कर लिया था। सब कुछ बड़ी जल्दी में हुआ समय जैसे इतनी तेजी से निकला कि कुछ पुराने पन्ने पीछे रह गए और जिंदगी आगे बढ़ गई।
हम लोगों ने उस दिन साथ में ही लंच किया मम्मी और पापा मुझसे पूछने लगे बेटा अब आगे का तुमने क्या सोचा है। मैंने मम्मी पापा से कहा अभी तो मैं यहीं रहकर जॉब करना चाहती हूँ लेकिन मैं उसके बाद विदेश चली जाऊंगी। पापा कहने लगे क्या तुम हमें छोड़कर विदेश जाओगी मैंने पापा से कहा हां पापा आपको मालूम है ना मेरा सपना पहले से ही था कि मैं विदेश में जाकर नौकरी करू। पापा इस बात से बहुत खुश तो नहीं थे लेकिन उन्होंने कुछ भी नहीं कहा वह सिर्फ अपनी गर्दन हिला कर कहने लगे ठीक है बेटा तुम देख लेना जैसा तुम्हें उचित लगता है। हम लोग लंच कर के बैठे ही थे कि दोपहर के वक्त हमारे घर की डोर बेल बजी पापा कहने लगे इतनी गर्मी में कौन आया होगा। बाहर गर्मी भी काफी ज्यादा हो रही थी मम्मी ने जब दरवाजा खोल कर देखा तो दरवाजे पर मेरे मामा खड़े थे। मम्मी ने मामा को अंदर बुला लिया और उन्हें कहने लगी आप इतनी दोपहर में आज घर पर चले आए मामा जी कहने लगे मुझे दरअसल कोई जरूरी काम था इसलिए मैं आया था। मम्मी ने मामा को पानी का गिलास दिया मामा सोफे पर बैठे हुए थे मम्मी ने मामा से पूछा क्या तुमने खाना खा लिया था मामा कहने लगे हां मैंने खाना तो खा लिया था।
आज सब लोग घर पर ही थे पापा भी मामा के साथ बैठे हुए थे और मम्मी भी बैठ गई थी। मैं जब मामा से मिली तो मामा मुझसे पूछने लगे आकांक्षा बेटा तुम्हारी नौकरी कैसी चल रही है मैंने उन्हें बताया कि नौकरी तो बहुत अच्छी चल रही है। मामा मुझे कहने लगे कि बेटा तुम गुंजन को कुछ समझाओ गुंजन की तो जैसे कुछ समझ में ही नहीं आता है। मम्मी ने मामा से पूछा ऐसा क्या हुआ जो तुम गुंजन को इतना कुछ कह रहे हो। मामा कहने लगे दीदी तुम्हें मालूम है गुंजन का हमारे पड़ोस में रहने वाले ही एक आवारा लड़के के साथ प्रेम संबंध चल रहा है और जब मुझे इस बारे में पता चला तो मैंने उसे घर में ही बंद कर दिया लेकिन वह मुझे ही कह रही है कि आप तो मेरे बारे में कुछ सोचते ही नहीं है। मम्मी ने मामा से कहा भैया क्या बात कर रहे हो क्या गुंजन ने ऐसा किया। सब लोग चौक गए थे और मुझे भी यह सुनकर बहुत अजीब सा महसूस हुआ गुंजन के बारे में मैंने कभी ऐसा सोचा नहीं था लेकिन ना जाने गुंजन के सर पर क्यों भूत सवार था। जब मामा ने पूरी बात बताई तो पापा भी कहने लगे हम गुंजन से बात करते हैं। मामा जी कहने लगे अभी मैं चलता हूं मामा घर से चले गए थे मम्मी और पापा आपस में बात कर रहे थे और वह लोग बदलते हुए जमाने को दोष दे रहे थे। पापा ने हमेशा ही मुझे एक अच्छी परवरिश दी है और उन्होंने कभी भी मेरे बारे में ऐसा कुछ नहीं सोचा लेकिन गुंजन को तो जैसे अच्छे और बुरे के बीच में अंतर ही समझ नहीं आ रहा था। हम लोग शाम के वक्त मामा जी के घर पर गए गुंजन अपने रूम में बैठी हुई थी और वह अपने कमरे में ही बैठकर रो रही थी। मैं गुंजन के साथ बैठ गई और उससे बात करने लगी गुंजन कहने लगी अब मैं बड़ी हो गई हूं मैंने गुंजन की बातों का जवाब दिया और कहा हां मुझे पता है तुम बड़ी हो चुकी हो।
गुंजन मुझे कहने लगी यदि मैं बड़ी हो गई हूं तो क्या मैं अपने फैसले खुद नहीं ले सकती मैंने गुंजन को समझाया और कहा गुंजन कुछ फैसले घर वालों पर ही छोड़ दो। गुंजन मुझे कहने लगी तुम भी पापा की तरफदारी कर रही हो मैंने गुंजन से कहा देखो ऐसी कोई बात नहीं है लेकिन तुम ही मुझे बताओ क्या तुम्हारा गुस्सा जायज है। गुंजन मुझे कहने लगी तुमने कभी प्यार नहीं किया ना इसलिए तुम मेरी भावनाओं को नहीं समझ सकती। हम दोनों आपस में बात कर रहे थे तभी मामा गुस्से में चिल्लाते हुए आए और गुंजन को कहने लगे तुम्हें मैंने इसी दिन के लिए बड़ा किया था। मैंने भी उस वक्त कुछ बोलना उचित नहीं समझा मम्मी मामा को बाहर हॉल में ले आई और गुंजन अपने कमरे में ही बैठी हुई थी। सब लोगों ने गुंजन को समझाने की कोशिश की और कहा कि वह लड़का तुम्हारे लिए बिल्कुल भी ठीक नहीं है लेकिन गुंजन के सर पर तो जैसे प्यार का भूत सवार था और वह कुछ सुनने तक को तैयार नहीं थी इस बात से मामा मामी बहुत ही परेशान थे। वह लोग कहने लगे कि हमने अपने बच्चों को इतनी अच्छी परवरिश दी लेकिन उसके बावजूद भी उन्होंने हमारी परवरिश का हमें यह सिला दिया। हम लोग भी अब घर आ चुके थे लेकिन शायद किसी को कुछ पता नहीं था कि गुंजन कुछ ही दिनों बाद घर से भाग जाएगी।
वह घर से भाग चुकी थी लेकिन अब मामा पूरी तरीके से टूट चुके थे क्योंकि गुंजन ने मामा की इज्जत को पानी में मिला दिया था। जिस प्रकार से गुंजन ने मामा जी की लोगों के सामने बेइज्जती करवाई मामा उसे कभी माफ करने वाले नहीं थे और ना ही उसको कोई भी माफ करने वाला था। मैंने मम्मी से कहा गुंजन ने बहुत ही गलत किया तो मम्मी मुझे कहने लगी कि बेटा कभी तुम भी तो ऐसा नहीं करोगी मैंने मम्मी से नही मम्मी आप कैसी बात कर रही हैं। मेरी मम्मी मुझे कहने लगी बेटा हर मां बाप को अपने बच्चों की चिंता सताती है ना और मैं तो यह सोच कर परेशान हूं कि तुम्हारे मामा जी के दिल पर क्या बीत रही होगी वह कितने दुखी होंगे। मैंने मम्मी से कहा हां मम्मी आप बिल्कुल ठीक कह रही हैं मामा जी बहुत दुखी होंगे इस वक्त मामा जी के पास शायद कोई भी नहीं था जो उन्हें मदद कर सकता था मामा जी ने पूरी कोशिश की लेकिन अब तक गुंजन का कहीं भी पता नहीं था। मैं भी कई बार सोचती कि गुंजन ने ऐसा क्यों किया होगा लेकिन यदि मैं उसकी जगह होती तो शायद मैं भी ऐसा ही करती क्योंकि वह प्यार मैं सब कुछ भूल चुकी थी। उसे अपने माता-पिता तक की चिंता नहीं थी लेकिन मैं ऐसी गलती नहीं करना चाहती थी एक दिन मैं अपने घर पर ही काम कर रही थी तभी मैंने सुना घर की किसी ने डोर बेल बजाई। जब घर कि डोर बेल बजी तो मैंने दरवाजा खोला मम्मी और पापा मामा जी के घर पर गए हुए थे मैं घर में अकेली थी। मैंने देखा 6 फुट लंबा लड़का बाहर खड़ा था मैं उसे देखती रही जब मैं उसे देखती तो उसे भी अच्छा लगता और वह मेरी तरफ देखे जा रहा था। मैंने उससे कहा आपको क्या कुछ काम था तो वह कहने लगा हां दरअसल मैं आपसे यह पूछना चाहता था कि यहां पड़ोस में अंकित नाम का लड़का रहता था आप उसे जानती हैं?
मैंने उसे बताया हां पहले अंकित नाम का एक लड़का रहता था लेकिन अब शायद वह यहां से छोड़कर जा चुका है आपको क्या कुछ काम था। वह कहने लगा हां मेरा नाम मनीष है मुझे उससे मिलना था मैंने उसे कहा आप अंदर आ जाइए। मैंने उसे अंदर बुला लिया लेकिन जब उसके चेहरे की तरफ में देखती तो मुझे लगता कि उसे मुझे चूम लेना चाहिए और उसे अपना बना लेना चाहिए लेकिन मेरे दिमाग में सिर्फ कुछ गुंजन का ही खयाल आ रहा था। मैंने मनीष के हाथ को कसकर पकड़ लिया वह भी थोड़ा घबरा गया था। मेरा यह पहला ही मौका था और वह पहली बार ही मुझे मिला था लेकिन मनीष ने भी मेरे होठों को चूम लिया। हम दोनों के अंदर गर्मी पैदा होने लगी थी एक अनजान शख्स को मैं अपना बनाना चाहती थी और मुझे नहीं पता था कि अब आगे क्या होने वाला है लेकिन उस वक्त तो मुझे मनीष के साथ किस करने में बड़ा आनंद आ रहा था और काफी देर तक हम दोनों एक दूसरे के होठों को चूमते रहे। मैंने जब मनीष के लंड को देखा तो मैं भी अपने आपको ना रोक सकी और उसके मोटे लंड को मैंने अपने हाथों में ले लिया तो मेरे अंदर भी अब उत्तेजना जागने लगी थी।
मैंने उसके लंड को अपने हाथों से हालाना शुरु किया और जैसे ही मैंने उसके मोटे लंड को अपने मुंह के अंदर लिया तो मुझे आनंद आने लगा और वह भी पूरी तरीके से उत्तेजित हो गया था। जैसे ही उसने मेरे सूट को खोल कर मुझे नंगा किया तो मुझे शर्म आ रही थी पहली बार मैं किसी लड़के के सामने नंगी खड़ी थी और मेरे अंदर कुछ बेचैनी सी हो रही थी। मनीष ने मेरी ब्रा और पैंटी को उतारते हुए मेरे स्तनों का रसपान किया तो मैं भी खुशी से फूली नहीं समा रही थी और जैसे ही उसने अपने मोटे से लिंग को मेरी योनि पर सटाया तो मेरी योनि से पानी बाहर की तरफ निकलने लगा। जब मनीष ने मेरे दोनों पैरों को चौड़ा कर के मुझे धक्के देने शुरू किए तो मेरी चूत से पानी के साथ साथ खून भी निकलने लगा था और इतना ज्यादा खून बाहर निकल आया था कि मैं ज्यादा देर तक मनीष के लंड की गर्मी को अपनी योनि से बर्दाश्त नहीं कर सकती थी आखिरकार मनीष ने भी अपने वीर्य को मेरी योनि में गिरा दिया। मनीष घर से चला गया उसके बाद ना तो मुझे कभी मनीष मिला और ना ही मैं उससे कभी मिलना चाहती थी।